रिजर्व बैंक की ताजा मौद्रिक नीति में मुद्रा की तरलता बढ़ाने के मकसद से की गई रेपो रेट में कटौती से स्वाभाविक ही उद्योगजगत में उत्साह है। हालांकि रिजर्व बैंक ने बहुत संभल कर यह कदम उठाया है। जहां रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की कटौती की गई है, वहीं रिवर्स रेपो दर में इतने ही अंकों की बढ़ोतरी की गई है। यानी रेपो दर घट कर साढ़े छह और रिवर्स रेपो दर बढ़ कर छह फीसद पर पहुंच गई है। इस तरह दोनों के बीच सौ आधार अंक से घट कर पचास आधार अंकों का अंतर रह गया है। इससे बाजार में मुद्रा का प्रवाह बढ़ने की गुंजाइश बनी है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि रेपो और रिवर्स रेपो दरों के बीच महज पच्चीस आधार अंकों का अंतर होना चाहिए, क्योंकि दुनिया के अनेक देशों में इतना ही अंतर है। रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात यानी सीआरआर की दर में कोई बदलाव नहीं किया है, पर इसकी दैनिक आवश्यकता पंचानबे फीसद से घटा कर नब्बे फीसद कर दी गई है। इस तरह बैंकों के पास कारोबार के लिए पैसा कुछ अधिक होगा। रेपो दरों में कटौती से आवास, वाहन, कारोबार आदि की खातिर लिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज दरें कम होंगी। छोटे व्यवसायियों के लिए निस्संदेह इस फैसले से राहत की उम्मीद बनी है। मगर जो मध्यवर्गीय नौकरी-पेशा और कम आय वाले लोग बैंकों में अपनी जमा-पूंजी रख कर ब्याज के आसरे रहते हैं, उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा।

अभी तक रिजर्व बैंक रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कोई बदलाव करने से इसलिए परहेज करता आ रहा था कि महंगाई की दर पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ था। पिछले कुछ समय से महंगाई का रुख उतार पर है और माना जा रहा है कि जल्दी ही यह पांच फीसद के आसपास सिमट जाएगा। इसलिए उद्योगजगत का काफी समय से दबाव था कि बैंक दरों में परिवर्तन किया जाए। महंगाई पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ था तब रिजर्व बैंक ने थोड़े-थोड़े अंतराल पर बैंक दरों को कड़ा करने का फैसला किया था। इसकी वजह से औद्योगिक विकास दर घटने लगी थी। भवन निर्माण के कारोबार में सुस्ती आ गई थी। अब इसमें गति आने की उम्मीद बनी है। मगर बाजार में मुद्रा का प्रवाह बढ़ने से महंगाई पर काबू पाने की चुनौती बनी रहेगी। दूसरे, इस साल बारिश कम होने की वजह से देश के अनेक इलाके सूखाग्रस्त हैं। फिर फसल पक कर तैयार होने के वक्त बारिश और ओलावृष्टि से काफी नुकसान हुआ है। ऐसे में चालू वित्तवर्ष में भी अगर मानसून ने साथ नहीं दिया तो महंगाई पर काबू पाना कठिन हो सकता है। जहां तक कर्जों की ब्याज दरों में कटौती का सवाल है, यह काफी कुछ बैंकों पर निर्भर करेगा। मुद्रा का प्रवाह बढ़ाने के मकसद से जब भी बैंकों को ढील दी गई है, वे अपने कारोबारी हितों को ध्यान में रखते हुए ही ग्राहकों को कर्जों की ब्याज दरों में सहूलियत देते रहे हैं, इसलिए सामान्य उपभोक्ता को इसका कितना लाभ मिल पाएगा, देखने की बात है। हां, इससे बैंकों को यह लाभ अवश्य होगा कि वे अपनी अधिक पूंजी का इस्तेमाल कर्ज देने के लिए कर पाएंगे। हालांकि रिजर्व बैंक ने बहुत संभल कर ब्याज दरों में कटौती की है, इसलिए औद्योगिक विकास दर में ऊंची छलांग की उम्मीद नहीं की जा सकती।