हवाई अड्डों पर चौकस सुरक्षा व्यवस्था के दावे किए जाते हैं। खासकर दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर, जहां हर वक्त अतिविशिष्ट लोगों की आवाजाही रहती है, सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम हैं। फिर भी वहां से कोई आरोपी सुरक्षा बलों को चकमा देकर फरार हो जाए तो स्वाभाविक रूप से सवाल उठेंगे ही।

बलात्कार का एक आरोपी दिल्ली हवाई अड्डे से केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सीआइएसएफ और आव्रजन विभाग के कर्मचारियों को चकमा देकर चार सुरक्षा घेरों को पार करते हुए निकल भागा। विचित्र है कि इस घटना पर आव्रजन विभाग और सीआइएसएफ एक-दूसरे पर दोष मढ़ने में जुट गए। आव्रजन विभाग का कहना है कि उसने आरोपी को सीआइएसएफ के हवाले कर दिया था, जबकि सीआइएसएफ का तर्क है कि उसे औपचारिक रूप से आरोपी की गिरफ्तारी के बारे में नहीं बताया गया था।

दरअसल, आरोपी के खिलाफ पंजाब पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए ‘लुकआउट सर्कुलर’ जारी किया था। उसी के तहत आव्रजन विभाग ने आरोपी को पकड़ा और सीआइएसएफ को सौंप दिया। सीआइएसएफ कर्मी की लापरवाही से आरोपी निकल भागा। मगर यह समझ से बाहर है कि अगर किसी एक सिपाही की चूक के चलते आरोपी भागा, तो उस संवेदनशील क्षेत्र में बने बाकी के सुरक्षा घेरे में तैनात बलों का ध्यान उस पर क्यों नहीं गया। बताते हैं कि आरोपी खिड़की से कूद कर भागा था। फिर भी कैसे किसी सुरक्षाकर्मी की नजर उस पर नहीं गई!

आंतरिक सुरक्षा का मामला केवल इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से जुड़ा नहीं है। कुछ दिनों पहले ही संसद में दो युवाओं ने कूद कर दहशत फैलाने की कोशिश की। उसे लेकर आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में आए दिन सुरक्षाबलों के काफिले और चौकियों पर हमले हो जाते हैं।

इसके बावजूद समझना मुश्किल है कि संवेदनशील प्रतिष्ठानों की सुरक्षा व्यवस्था को पूरी तरह भरोसेमंद बनाने के व्यावहारिक उपाय क्यों नहीं जुटाए जाते। अधिकार क्षेत्र और कानूनी औपचारिकताओं का पहलू अलग हो सकता है, मगर यह जानते-समझते हुए कि एक ऐसे आरोपी के पकड़ में आने के बाद, जिसे पुलिस तीन साल से तलाश रही थी, लापरवाही बरती जाए, तो सामान्य सुरक्षा के मामलों में उससे भला किस तत्परता उम्मीद की जा सकती है। दिल्ली देश की राजधानी है और यहां सुरक्षा के मामले में किसी भी तरह की चूक या लापरवाही किसी बड़ी वारदात का मौका दे सकती है। मगर वहां भी आए दिन हत्याएं और बलात्कार की घटनाएं दर्ज होती हैं। यह सुरक्षा इंतजाम में खामी नहीं तो और क्या है।

जब दिल्ली की संवेदनशील जगहों, जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित इलाकों, यहां तक कि संसद की सुरक्षा में लापरवाही देखी जा रही है, तो सामान्य नागरिक ठिकानों पर सुरक्षा इंतजामों को लेकर कितना भरोसा किया जा सकता है। लगभग सभी राज्य लचर कानून-व्यवस्था के चलते अपराधों पर नकेल कसने में विफल साबित हैं। स्त्रियों के खिलाफ हिंसा और यौन अत्याचार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे।

ऐसे में अगर बलात्कार का एक आरोपी सबसे सख्त पहरे से निकल भागने में कामयाब होता है और जवाबदेह विभाग परस्पर कानूनी दायरे की नुक्ताचीनी में उलझे देखे जाते हैं, तो इससे दूसरे अपराधियों का मनोबल बढ़ता ही है। आमचुनाव नजदीक हैं और उस दौरान सुरक्षा घेरे में चलने वाले लोगों की खुले में आवाजाही बढ़ेगी। अगर आंतरिक सुरक्षा को लेकर इसी तरह की लापरवाहियां बनी रहीं, तो मुश्किलें शायद ही कम हों।