भारतीय रेल से सफर को अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता से लैस बनाने के दावों और वादों के बीच हकीकत यह है कि आए दिन हादसे सामने आते रहते हैं। हर दुर्घटना के बाद जांच, राहत और मुआवजे की घोषणा की बात कुछ समय बाद आई-गई हो जाती है और फिर कुछ दिन बाद कोई नई दुर्घटना की खबर आ जाती है। आखिर यह कब सुनिश्चित होगा कि यात्रियों के लिए रेल से सफर करना सुगम और सुरक्षित है? गौरतलब है कि महाराष्ट्र के जलगांव में बुधवार को पुष्पक एक्सप्रेस में आग लगने के शोर के बाद यात्रियों के बीच ऐसी बदहवासी फैली कि जान बचाने की कोशिश में कई लोग उस ट्रेन से बाहर कूद गए और घबराहट में पटरी पर इधर-उधर भागने लगे। इस बीच बगल की पटरी पर तेज रफ्तार से आ रही कर्नाटक एक्सप्रेस की चपेट में आकर तेरह लोगों की जान चली गई। इससे संबंधित जो ब्योरे सामने आ सके हैं, उसके मुताबिक यह घटना किसी व्यक्ति के अफवाह उड़ाने से मची घबराहट का नतीजा है, लेकिन इतना साफ है कि अचानक उपजी अव्यवस्था से निपटने के लिए भारतीय रेल के पास शायद कोई तंत्र नहीं है।

आए दिन होने वाले ऐसे हादसों से भरोसा उठने का डर है

यह विडंबना ही है कि कभी किसी तकनीकी गड़बड़ी तो कभी किसी कर्मचारी की लापरवाही या फिर चूक की वजह से ट्रेन हादसे और उनमें जानमाल के नुकसान का एक सिलसिला-सा बन गया है। इसके अलावा, अब किसी अफवाह की वजह से भी ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि उसमें बेहद तकलीफदेह तरीके से उन लोगों की जान चली जा सकती है, जिन्होंने अपने गंतव्य पर पहुंचने के लिए ट्रेन से सफर करना चुना होगा। वजहें अलग-अलग हो सकती हैं, मगर आए दिन होने वाले ऐसे हादसे यह बताते हैं कि ट्रेनों से यात्रा करना किस तरह असुरक्षित हो गया है।

अगर ताजा हादसे का कारण आग लगने की अफवाह है, तो भी चलती ट्रेन में अचानक उपजी स्थिति से निपटने और यात्रियों की सुरक्षा के लिए आखिर रेलवे के पास कौन-सा तंत्र है? ताजा घटना से यही साफ हुआ है कि अगर किसी अफवाह से स्थिति बिगड़ी तो उस पर तुरंत प्रतिक्रिया देने वाली रेलवे की कोई टीम नहीं थी। कहने को हर स्तर पर सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही जाती है, लेकिन किसी हादसे के बाद रेल महकमे का यह आश्वासन एक तरह से उन दावों को आईना दिखाता है।

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पिछले कुछ समय से ट्रेन हादसों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। अफसोसनाक यह है कि हादसों के सिलसिले के बावजूद इसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होता। एक वक्त था जब एक रेल दुर्घटना के बाद रेलमंत्री ने इस्तीफा दे दिया था। मगर आज नैतिकता की कसौटी पर इस तरह का उदाहरण मिलना मुश्किल हो गया है कि बड़े ट्रेन हादसों के बाद भी महकमे के संबंधित अधिकारी या मंत्री किसी भी रूप में अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें। दुर्घटना के बाद औपचारिकता पूरी करने के लिए जांच की घोषणाओं के नतीजे क्या आते हैं और उसके बाद कार्रवाई क्या होती है, इसके बारे में आम लोगों को शायद ही कभी पता चल पाता है।

रेल महकमे में खाली पड़े पदों पर नियुक्तियों को लेकर कोई संजीदगी नहीं दिखती। इसके समांतर ट्रेनों के सफर को ज्यादा से ज्यादा सुविधाजनक और सुरक्षित बनाने के नाम पर यात्रियों से किस-किस मद में टिकट के तौर पर पैसे वसूले जाते हैं, यह छिपा नहीं है। मगर आए दिन होने वाले हादसे यह बताते हैं कि रेल महकमे के भीतर यात्रियों की सुरक्षा को लेकर अपेक्षित चिंता नहीं दिखती है।