अमूमन ट्रेनों के फेरे और दूरी बढ़ाने, रेलमार्गों का विस्तार करने तथा नई रेलगाड़ियां चलाने की घोषणाएं हर रेल बजट का अहम हिस्सा होती रही हैं। पर इस बार के रेल बजट ने इससे परहेज किया है। इस मायने में यह एक फीका रेल बजट है। अलबत्ता रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को पेश किए अपने दूसरे बजट में किराए में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। खुद रेलमंत्री ने स्वीकार किया है कि रेलवे संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में किराए यथावत रहने से तमाम लोगों ने राहत की सांस ली होगी। पर क्या यह सचमुच राहत है? सरकार पहले ही, नवंबर में ऊंचे दर्जे के किराए में चार फीसद की बढ़ोतरी कर चुकी है। फिर तत्काल टिकट की कीमत बढ़ाई गई, तत्काल का दायरा दस फीसद से बढ़ा कर तीस फीसद कर दिया गया, टिकट रद््द कराने पर दोगुना शुल्क लगाने की घोषणा की गई। पहले से मिल रही बहुत-सी रियायतों में कटौती कर दी गई। इस सब के लिए बजट का इंतजार करना जरूरी नहीं समझा गया। बजट लोकलुभावन दिखे, इस इरादे से, किराए और मालभाड़े में पहले ही बढ़ोतरी यूपीए सरकार के समय भी हुई थी। इस पर विरोध जताते हुए नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा था। पर खुद उनकी सरकार ने भी वही किया है। नए रेल बजट ने 2020 तक पूरा किए जाने वाले लक्ष्यों को भी प्रदर्शित करने में कोई संकोच नहीं किया है। मसलन, 2020 तक हर यात्री को कन्फर्म टिकट मिलेगा। पांच साल बाद कोई रेलवे क्रॉसिंग बिना चौकीदार के नहीं होगी। इस बार के रेल बजट में महिलाओं और बुजुर्गों का खास खयाल रखा गया है। उनके लिए लोअर बर्थ में कोटा बढ़ाया जाएगा। महिला मुसाफिरों के लिए चौबीसों घंटे हेल्पलाइन सेवा होगी। ‘स्वच्छ रेल स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत एसएमएस कर सफाई के लिए मुसाफिर कह सकते हैं। बंदरगाहों तक रेललाइन ले जाने और पूर्वोत्तर को रेल से जोड़ने को प्राथमिकता देने की बात कही गई है। ढाई हजार किलोमीटर तक ब्रॉडगेज का ठेका देने और चार सौ स्टेशनों के पुनर्विकास का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
पर पहले के रेल बजटों को याद करें, तो इस बार ज्यादा बड़ी घोषणाएं नहीं हैं। तमाम चर्चा के बावजूद इस बार भी बुलेट ट्रेन का कोई जिक्र नहीं है। इसके बजाय सामान्य से ज्यादा रफ्तार वाली ट्रेनें चलाने तथा ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने पर रेल मंत्रालय ने अपना ध्यान केंद्रित किया है। अंत्योदय, हमसफर, तेजस और उदय नाम की चार नई ट्रेनें चलाई जाएंगी। इनमें से अंत्योदय पूरी तरह अनारक्षित बोगियों वाली ट्रेन होगी, और यह स्वागत-योग्य है। पर दूसरी ट्रेनों में जनरल बोगियों की तादाद बढ़ाने का फैसला सरकार ने क्यों नहीं किया, जिसकी मांग लंबे समय से उठती रही है। रेलवे हमारे देश में सार्वजनिक परिवहन की सबसे बड़ी सेवा है। रोजाना दो से ढाई करोड़ लोग इससे सफर करते हैं। पर इसका तंत्र चाहे जितना विशाल हो, पर्याप्त दुरुस्त नहीं है। तकनीकी खामी से लेकर अनुशासन की कमी तक, रेलवे के कामकाज में अनेक गंभीर खामियां हैं, जिनकी कीमत कई बार हादसों के रूप में चुकानी पड़ती है। हर बार की तरह इस बार के रेल बजट में भी रेल यात्रा को सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से बेहतर बनाने का भरोसा दिलाया गया है। पर रेलमंत्री ने यह बताना जरूरी क्यों नहीं समझा कि पिछली बार जो घोषणाएं की गई थीं उनमें से कितनी पूरी हो सकी हैं।