एक बार फिर राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए सवालों के घेरे में है। चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा यानी नीट के नतीजों में भारी गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं। विपक्षी दल कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में इस मामले की जांच कराने की मांग की है। भारतीय चिकित्सकों के संगठन ने भी सीबाआइ से इसकी जांच की मांग उठाई है। मगर एनटीए का कहना है कि परीक्षा में कोई धांधली नहीं हुई है। केवल छह केंद्रों पर प्रश्नपत्र कुछ देर से बांटे जा सके थे। केवल सोलह सौ अभ्यर्थियों की शिकायत है, उसका समाधान किया जा रहा है। पंद्रह सौ विद्यार्थियों को कृपांक दिए गए थे, उनकी पुस्तिकाओं की जांच के लिए एक समिति गठित कर दी गई है। मगर एनटीए की इस दलील से नीट के नतीजों पर कितना भरोसा बन पाएगा, कहना मुश्किल है। आरोप है कि उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में धांधली हुई है। हर वर्ष तीन से चार विद्यार्थी ही पहले स्थान पर पहुंच पाते थे, इस बार सड़सठ विद्यार्थियों को पहला स्थान मिला है। छह विद्यार्थियों को बराबर-बराबर अंक मिले हैं।

चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले को लेकर गड़बड़ी की शिकायत नई नहीं है, मगर यह एनटीए द्वारा आयोजित परीक्षा में भी देखी जा रही है, तो निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय है। एनटीए का गठन ही इस मकससद से किया गया था कि प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में होने वाली धांधली को रोका जा सकेगा। इस परीक्षा में चूंकि लाखों परीक्षार्थियों को कंप्यूटर के माध्यम से जोड़ा जाता और एक ही समय सबको पर्चे जारी किए जाते हैं, इसलिए उसमें पर्चे बाहर जाने की गुंजाइश नहीं रहती। इतना चाक-चौबंद होने के बावजूद अगर उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, तो इससे एनटीए की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े होते हैं। एनटीए की तरफ से गठित समिति की जांच से शायद ही असलियत पता चल सकेगी। ऐसे गंभीर मामले को ढंकने-छिपाने की कोशिशों के बजाय निष्पक्ष जांच कराने का कोई भरोसेमंद रास्ता निकाला जाना चाहिए, ताकि लोगों को एजंसी की परीक्षा प्रणाली पर भरोसा कायम हो सके।