भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के संगठन क्वाड का यह छठवां शिखर सम्मेलन था, जिसमें चारों देशों ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। अभी चार वर्ष हुए हैं इस संगठन को बने हुए। इस बीच दो आभासी माध्यम से बैठकें भी हो चुकी हैं। इस सम्मेलन में क्वाड देशों के बीच हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी ऐतिहासिक फैसले हुए हैं। इसमें ‘कैंसर मूनशाट इनिशिएटिव’ के जरिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से जीवन बचाने के लिए साझेदारी और समुद्री सुरक्षा को आगे बढ़ाने के लिए 2025 में ‘क्वाड ऐट सी शिप आब्जर्वर मिशन’ शुरू करना शामिल है।
इसके जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे के समावेशी विकास को आगे बढ़ाया जाएगा। संभावित बीमारियों और महामारियों से पार पाने के लिए पहले से रणनीति बनाने पर भी जोर दिया गया है। निस्संदेह ये महत्त्वपूर्ण समझौते हैं। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से पार पाना इस समय की बड़ी चुनौती है। क्वाड समझौते से निश्चय ही इस पर काबू पाने में काफी मदद मिल सकेगी। इसके अलावा, इस सम्मेलन में क्वाड देशों के बीच सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंंखला को मजूबत बनाने के लिए किया गया समझौता बेहद अहम है।
हिंद प्रशांत क्षेत्र विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्र है, जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं- एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल से सारे देश सतर्क हैं। दरअसल, चीन से मिलने वाली चुनौतियों से पार पाने के मकसद से ही क्वाड का गठन किया गया था। इस क्षेत्र में भारत की भूमिका अहम है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान चीन का मुकाबला करने के लिए दक्षिण चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर में भारत की उपस्थिति चाहते हैं।
चीन की पैठ से पड़ोसी देश परेशान
भारत भी अपनी सीमाओं और पड़ोसी देशों में चीन की पैठ से परेशान है। अमेरिका से उसकी तनातनी पुरानी है। ऐसे में, इन देशों के एक मंच पर उपस्थित होने से चीन को चुनौती देने में आसानी होगी। समुद्री सीमा के विस्तार और उसमें इन देशों के साझा सैन्य अभ्यास से चीन को रोकना आसान होगा। इस अर्थ में क्वाड का ताजा शिखर सम्मेलन कई अर्थों में ऐतिहासिक कहा जा सकता है।
फिलहाल देशों की ताकत उनकी तकनीकी संपन्नता से आंकी जाने लगी है। इस मामले में चीन अनेक मामलों में अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से बहुत आगे है। खासकर सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में फिलहाल पूरी दुनिया में उसका दबदबा है। अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में काफी तरक्की की है, पर अब भी वह चीन से काफी पीछे है। भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में बहुत तेजी से कदम आगे बढ़ाया है, मगर उसके सामने कई अड़चनें बनी हुई हैं।
दो कंपनियों ने इसमें निवेश का उत्साह दिखाया था, मगर उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए। तीसरी कंपनी को विदेशी विशेषज्ञों की जरूरत है, जो फिलहाल उपलब्ध नहीं हो पा रहे। ऐसे में क्वाड सम्मेलन में इस क्षेत्र में शोध और शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक मदद की घोषणा से निश्चय ही उल्लेखनीय नतीजे आने की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि सम्मेलन के बाद हमारे प्रधानमंत्री ने चीन का नाम लिए बगैर कहा कि क्वाड किसी के खिलाफ नहीं है। हम क्षेत्रीय अखंडता और सभी मुद्दों पर शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने के समर्थन में हैं। पर इस वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि क्वाड की सक्रियता से चीन की चिंता तो बढ़ी है।