पंजाब में जारी तनाव और अव्यवस्था ने कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। पंजाब में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल भाजपा ने भी इस मामले में राज्य सरकार की आलोचना की है, कि उसने पर्याप्त एहतियाती कदम नहीं उठाए। पर यह भी सही है कि यह कानून-व्यवस्था का कोई सामान्य मामला नहीं है। पंजाब में सिखों के धार्मिक ग्रंथ का अपमान किए जाने की एक के बाद एक कई घटनाएं हो चुकी हैं। इसलिए राज्य में जिस तरह के तनाव और नाराजगी का माहौल है, वह कोई हैरत की बात नहीं है। शायद इन घटनाओं के पीछे मकसद भी यही रहा होगा।
अब तक इस तरह के सात मामले सामने आ चुके हैं। कुछ ही दिनों में इस तरह एक के बाद एक कई वाकये होना यह शक पैदा करता है कि हो न हो इसके पीछे कोई षड्यंत्र हो। दो दिन पहले हुई दो व्यक्तियों की गिरफ्तारी से इस शंका को और बल मिला है। बारह अक्तूबर को फरीदकोट जिले के बरगारी गांव में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी किए जाने की घटना हुई थी। पुलिस ने बरगारी मामले में दो भाइयों को गिरफ्तार किया है। पुलिस का दावा है कि उसने इस बात के सबूत जुटा लिये हैं कि इन दोनों के इस कारस्तानी के सिलसिले में दुबई और आस्ट्रेलिया में बैठे कुछ लोगों से बराबर संपर्क थे और वहां से इन्हें आर्थिक मदद मिल रही थी। बाहरी हाथ किनका हो सकता है, फिलहाल इस बारे में अनुमान ही लगाया जा सकता है। सिख समुदाय में आक्रोश पैदा करने में अपना स्वार्थ देखने वाले कुछ समूह लंबे समय से पंजाब में रहे हैं और देश से बाहर भी। पंजाब में उग्रवाद का दौर समाप्त होने से निराश ये समूह हमेशा ऐसे किसी न किसी मौके की ताक में रहते हैं जिससे सिखों की भावनाएं भड़काई जा सकें।
लेकिन एक अनुमान यह भी है कि इस सब के पीछे किसी सिख अतिवादी संगठन की भूमिका न होकर, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी यानी आइएसआइ का हाथ हो सकता है। हमारे केंद्रीय खुफिया विभाग ने लगभग बीस दिन पहले ही इस तरह की साजिश की बाबत राज्य सरकार को आगाह कर दिया था। फिर, एहतियाती उपाय करने में क्या चूक रह गई? या, उस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया? इन्हीं दिनों देश में सौहार्द बिगाड़ने वाली और भी घटनाएं हुई हैं और इनका दायरा अनेक राज्यों तक फैला हुआ है। सभी घटनाओं को बाहरी षड्यंत्र का हिस्सा नहीं कहा जा सकता।
इसलिए यह जरूरी है कि सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और अन्य समुदायों के प्रति नफरत फैलाने के प्रयासों के प्रति लोग सचेत हों और उन्हें नाकाम करें। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को एक पखवाड़े के भीतर दो बार इस आशय का संदेश देने की जरूरत महसूस हुई है, तो यह दिखाता है कि देश के सामने आज सबसे बड़ी चिंता क्या है। बहुलतावाद और सहिष्णुता ही हमारे गणराज्य की बुनियाद हैं। दो हफ्ते पहले मौजूदा माहौल पर जब राष्ट्रपति ने पहली बार प्रतिक्रिया व्यक्त की, तो इन्हें हमारे संविधान के आधार के साथ-साथ भारतीय सभ्यता के बुनियादी मूल्य भी कहा था। इन्हें कमजोर करके भारत एक राष्ट्र के रूप में न मजबूत बना रह सकता है न प्रगति कर सकता है।
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