सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के पंचायती राज अधिनियम, 2015 को सही ठहराया है। इससे जहां हरियाणा में पंचायत चुनावों का रास्ता साफ हो गया है, वहीं एक हद तक पंचायती राज व्यवस्था की तस्वीर बदलने की उम्मीद की जा रही है। गौरतलब है कि मनोहर लाल खट््टर सरकार ने राज्य के पंचायती राज कानून में चार संशोधन पेश किए थे। इन संशोधनों से संबंधित विधेयक को विधानसभा की मंजूरी भी मिल गई और इस तरह ये संशोधन कानून का हिस्सा बन गए। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका के जरिए चुनौती दिए जाने के बाद संबंधित कानून कुछ समय के लिए अधर में लटक गया। सितंबर में न्यायालय ने इन संशोधनों पर रोक लगा दी थी, पर अपने ताजा फैसले में इन्हें उचित माना है। चार संशोधनों में से एक के तहत उम्मीदवारों का एक हद तक शिक्षित होना अनिवार्य है। अभी तक उनके लिए न्यूनतम योग्यता की कोई शर्त नहीं थी। हरियाणा सरकार के नए कानून के मुताबिक पंचायत चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों का दसवीं पास होना जरूरी है। अलबत्ता दलितों और महिलाओं के लिए इस शर्त में कुछ ढील दी गई है, उम्मीदवारी के लिए उनकी पात्रता आठवीं पास होने पर मानी जाएगी, वहीं दलित महिला के लिए न्यूनतम योग्यता पांचवीं पास निर्धारित की गई है। पंचायत चुनाव लड़ने का दूसरा पैमाना यह है कि उम्मीदवार पर सहकारी बैंक का कर्ज और बिजली का बिल बकाया न हो। तीसरी शर्त यह है कि उम्मीदवार के घर में शौचालय हो। चौथी शर्त के तहत संगीन आपराधिक मामलों के आरोपितों को चुनावी मैदान से बाहर रखने का प्रावधान है।
पंचायती राज से संबंधित हरियाणा का संशोधित कानून शुरू से विवाद का विषय रहा है। एतराज खासकर न्यूनतम योग्यता के निर्धारण को लेकर सामने आए। दलील दी गई कि जब विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए यह शर्त लागू नहीं है, जहां प्रतिनिधि के पढ़े-लिखे होने की कहीं अधिक आवश्यकता है, तो फिर पंचायत चुनावों में ऐसी बाध्यता क्यों? आलोचकों की दूसरी दलील यह थी कि औपचारिक शिक्षा और समाज सेवा की भावना एक दूसरे के पर्याय नहीं हैं। यह तर्क अपनी जगह ठीक हो सकता है, पर न्यूनतम योग्यता की कसौटी का नतीजा यह होगा कि पंचायतों का कामकाज पहले से ज्यादा सुचारु हो सकेगा; उनके संपूर्ण कंप्यूटरीकरण की बात भी सोची जा सकती है। शिक्षा संबंधी शर्त का एक सकारात्मक परिणाम यह भी होगा कि घर-परिवार के किसी भी सदस्य को उम्मीदवार बनाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। घर में शौचालय की शर्त पर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि स्वच्छता रखना सभ्य समाज की निशानी है, जनप्रतिनिधियों को इस मामले में मिसाल पेश करनी चाहिए। संगीन मामलों के आरोपितों को चुनाव मैदान से बाहर रखने का फैसला दूरगामी नतीजे ला सकता है। देर-सवेर अन्य राज्यों में भी पंचायत चुनावों में इस तरह का प्रावधान करने की मांग उठ सकती है। संशोधित कानून की आलोचना करने वाली कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल को सर्वोच्च अदालत के फैसले से झटका लगा है, वहीं भाजपा फूले नहीं समा रही। फैसले से उत्साहित मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एलान किया कि स्थानीय निकाय चुनावों में भी ये शर्तें लागू होंगी, इसके लिए अध्यादेश जल्द लाया जाएगा। अदालत के फैसले का एक संदेश यह भी है कि जब तक कोई संवैधानिक अड़चन न हो, विधायिका के निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए।