इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीक ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाया है, लेकिन चूंकि यह अपने आप में एक निरपेक्ष माध्यम है, इसलिए इसका इस्तेमाल करने में वैसे लोगों को भी कोई अड़चन नहीं आती, जो इसके जरिए किसी को परेशान करते हैं और यहां तक कि आपराधिक हरकत भी करते हैं।

हाल के दिनों में ‘डीपफेक’ तकनीक के जरिए कुछ जानी-मानी हस्तियों की तस्वीर और वीडियो से छेड़छाड़ कर उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिशों ने इस चिंता को बढ़ा दिया है कि इसकी सीमा आखिर कहां है! अच्छा यह है कि कुछ मामलों के सुर्खियों में आने के बाद इसकी गंभीरता के मद्देनजर सरकार ने इस मसले पर जरूरी सक्रियता का संकेत दिया है और अब वह डीपफेक पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने जा रही है।

गौरतलब है कि सरकार ने मंगलवार को डीपफेक तकनीक और भ्रामक सूचना के मुद्दे से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की सोशल मीडिया के मंचों के साथ समीक्षा करते हुए कहा कि अब इस मसले पर सौ फीसद अनुपालन को लेकर परामर्श जारी किया जाएगा। इसके तहत सोशल मीडिया मंचों को नए नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा और आनलाइन उपयोगकर्ताओं के विश्वास और सुरक्षा पर ध्यान दिया जाएगा।

दरअसल, फर्जीवाड़े के जरिए साइबर अपराधों के साथ-साथ इंटरनेट पर भ्रामक सूचनाओं का संजाल पहले ही एक जटिल समस्या के रूप में आम लोगों से लेकर सरकार तक के लिए मुश्किल पैदा करता रहा है। उसके अपने जोखिम हैं, जिसमें लोगों को गलत तरीके से प्रभावित करने से लेकर सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं को मनमर्जी से संचालित करने की आशंका जुड़ी है।

इससे निपटने के लिए कुछ कदम उठाए गए, मगर उसका कोई ठोस हासिल नहीं दिख रहा था। इसके समांतर पिछले कुछ समय में डीपफेक तकनीक ने जैसे खतरे खड़े किए हैं, उसने सभी स्तर पर एक नई चिंता खड़ी की है। जिस तरह तथ्यों में हेरफेर करके या फिर झूठे ब्योरे परोस कर भ्रामक सूचनाओं के जरिए लोगों को एक अंधेरे में झोंका जाता रहा है।

उसी तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से मीडिया सामग्री, तस्वीर या वीडियो में छेड़छाड़ या डिजिटल हेराफेरी करके किसी व्यक्ति को गलत ढंग से पेश किया जाता है। सिर्फ इतने से ही इसके खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति वीडियो में कुछ करता दिखता है, मगर वास्तव में वह उसमें नहीं होता है।

समस्या यह है कि सोशल मीडिया के ज्यादातर मंच कृत्रिम मेधा के उच्चतर स्तर का प्रयोग करने के बावजूद ऐसी तकनीक के जरिए परोसी गई सामग्री की रोकथाम करने का तंत्र अब तक विकसित नहीं कर पाए हैं। कुछ सामग्रियों को लेकर तथ्य-जांच के नाम पर एक सीमा तक लोगों को सावधानी बरतने की सूचना दी जाती है, मगर वह एक आधी-अधूरी व्यवस्था है।

कृत्रिम मेधा का विकास जिस स्तर तक हो चुका है, उसमें अलग-अलग स्वरूप वाले सोशल मीडिया मंचों को तस्वीर या वीडियो में छेड़छाड़ कर प्रस्तुत की गई सामग्री की पहचान करने और उसे रोकने की व्यवस्था लागू करनी चाहिए। यह एक ओर उसके अपने ही उपयोगकर्ताओं का विश्वास बनाए रखने के लिहाज से जरूरी है और साथ ही इससे असामाजिक या आपराधिक तत्त्वों पर लगाम भी लगाई जा सकेगी।

कायदे से सरकारी दिशानिर्देशों के बिना भी सोशल मीडिया मंचों को यह अपनी ओर से सुनिश्चित करना चाहिए था। अब अगर इस मसले पर सरकार को दखल देने की जरूरत पड़ी है तो यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह केवल चिंता जताती या साइबर अपराधियों पर लगाम लगाने की बात करती न दिखे, बल्कि जमीनी स्तर पर भी कोई ठोस व्यवस्था लागू हो।