हवा में घुलते जहर को दिल्ली के लोग रोजाना महसूस करते हैं। अन्य महानगरों और शहरों में भी वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
हाल में इससे संबंधित कई अध्ययन आए हैं। लेकिन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर को लगता है कि वायु प्रदूषण के ऐसे आंकड़ों के पीछे ‘निहित स्वार्थी तत्त्वों’ का हाथ है।
अलबत्ता ये कौन लोग हैं, उन्होंने नाम नहीं लिया। जावडेकर ने सवाल उठाया है कि वायु प्रदूषण पिछले दस महीनों की देन नहीं है, उससे पहले के दस वर्षों में भी यह समस्या थी, फिर पहले शोर क्यों नहीं मचाया जा रहा था? यह सब विकास को बाधित करने की साजिश है और इसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा है कि हालिया अध्ययन एक विशेष दूतावास की तरफ से मुहैया कराए गए आंकड़ों पर आधारित हैं।
इस बयान से जाहिर है कि पर्यावरण मंत्री पर्यावरण को लेकर कितने संवेदनशील हैं। हाल में वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट ने भी चिंता जताई और मीडिया ने भी अपनी रिपोर्टों से लोगों को आगाह किया। पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी कहा था।
क्या ये सब चेताने वाली सूचनाएं किन्हीं निहित स्वार्थों का खेल हैं? राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पिछले दिनों दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में निर्माण-कार्यों के चलते हवा में बढ़ने वाले प्रदूषण का संज्ञान लिया और इसे रोकने के कुछ निर्देश जारी किए। क्या इसे विकास में अड़ंगा डालने वाला माना जाए? चाहे वायु प्रदूषण हो या जल प्रदूषण, यह मसला लोगों के जीने और स्वस्थ रहने के अधिकार से ताल्लुक रखता है।
हवा में विषैले तत्त्वों की मौजूदगी बढ़ती जा रही है। इसके चलते सांस फूलने की बीमारी बढ़ रही है, दूसरे रोग भी बढ़ रहे हैं। सरकारी आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं। वायु प्रदूषण से आगाह करने के लिए पिछले दिनों खुद सरकार की ओर से वायु गुणवत्ता सूचकांक के तौर पर एक उल्लेखनीय पहल हुई, जिसमें दिल्ली समेत दस शहरों में डिस्प्ले बोर्ड पर वायु प्रदूषण का स्तर हर वक्त प्रदर्शित करने की व्यवस्था है।
सरकार ने इस योजना में और भी शहरों को शामिल करने का इरादा जताया है। विचित्र है कि जब सरकार खुद वायु प्रदूषण के प्रति आगाह करे, तो उसे पर्यावरण के प्रति उसकी चिंता के रूप में देखा जाए, और जब दूसरे लोग आगाह करें तो उनकी नीयत पर शक किया जाए! यह विरोधाभास दंभ और दमन की मानसिकता को ही दर्शाता है। अगर सरकार यह सोचती है कि वायु प्रदूषण के बारे में लोग यह सोच कर खामोश रहें कि कहीं विकास का पहिया न थम जाए, तो ऐसे विकास पर ही सवाल खड़े होते हैं।
ऐसा विकास किस काम का, जो लोगों की सेहत को खतरे में डाल दे? लंबे समय से विकास दर में दुनिया में सबसे अव्वल रहने वाले चीन की राजधानी बेजिंग की पहचान विश्व के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में हो गई। अब यह पहचान दिल्ली की है। चीन को बेंजिग की हवा सुधारने के लिए बहुत जतन करने पड़े हैं। वायु प्रदूषण कोई ऐसी स्थिति नहीं है जिसे छिपाया जा सके, क्योंकि इसका दंश लोग रोज भुगतते हैं।
इसलिए हकीकत को झुठलाने की कोशिश करने के बजाय सरकार को सोचना चाहिए कि परिवहन, ऊर्जा, नगर नियोजन, औद्योगिक अनुशासन आदि क्षेत्रों में पर्यावरण के लिहाज से सुधार के क्या कदम उठाए जाएं।
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