अब प्रधानमंत्री ने भी ब्रिटेन से दो टूक कह दिया है कि वह भारत विरोधी तत्त्वों के मामले में किसी भी तरह की उदारता न बरते। राजनयिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में किसी भी तरह की ढिलाई को स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से फोन पर बातचीत करते हुए पिछले दिनों भारतीय उच्चायोग में उपद्रवी तत्त्वों द्वारा तिरंगा उतारे जाने और ब्रिटिश सुरक्षाकर्मियों की ढिलाई की याद दिलाई। इसके साथ ही उन्होंने भारत के भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ भी कड़े कदम उठाने की अपील की। इससे ब्रिटेन को एक तरह से यह स्पष्ट संदेश मिला है कि भारत किसी भी रूप में अपने खिलाफ हमला करने वालों को बर्दाश्त करने वाला नहीं है।

इसी प्रकार पिछले दिनों जब आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर आए थे, तब भी हमारे प्रधानमंत्री ने उनसे आस्ट्रेलिया के हिंदू मंदिरों में हुई तोड़फोड़ को लेकर सख्त कार्रवाई करने की अपील की थी। उससे भी दुनिया के देशों को यह संदेश गया था कि भारत अपने खिलाफ किसी भी प्रकार का हमला सहन नहीं करेगा। इससे स्वाभाविक ही विपक्ष के उन नेताओं को भी यह संदेश गया है कि सरकार राजनय के मामले किसी भी रूप में ढिलाई नहीं बरतती, जो यह आरोप लगाते रहते हैं कि केंद्र विदेशी मामलों में उचित निर्णय नहीं ले पाती।

पिछले महीने खालिस्तान समर्थक कुछ उपद्रवियों ने ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग परिसर में से तिरंगा उतार कर उस पर अपना निशान फहरा दिया था। विचित्र है कि तब ब्रिटिश सुरक्षा कर्मियों ने उन पर शिकंजा कसने में लापरवाही बरती। उस घटना से नाराज भारत ने दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग के बाहर अपनी सुरक्षा हटा ली। तब ब्रिटेन ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए उच्चायोग और उसके कर्मचारियों-अधिकारियों की सुरक्षा का भरोसा दिलाया। इसके अलावा, एक कार्यक्रम में जब भारतीय उच्चायुक्त हिस्सा लेने जा रहे थे, तब उनका इस कदर विरोध किया था कि उन्हें अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।

उस घटना के बाद भारतीय उच्चायोग परिसर की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई जाने लगी थी। ये सारी बातें अभी तक विदेश मंत्रालय के स्तर पर होती रही थीं, मगर अब प्रधानमंत्री ने सीधे ब्रिटिश प्रधानमंत्री को इस संबंध में आगाह किया है, तो उम्मीद है, इस मामले में गंभीरता से ध्यान दिया जाएगा।

दो देशों के बीच संबंध केवल आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, वाणिज्यिक नहीं होता। दोनों के बीच परस्पर सुरक्षा की भावना भी प्रबल होनी चाहिए। ब्रिटेन और भारत के बीच बहुत पुराने संबंध हैं। वहां बड़ी तादाद में भारतीय नागरिक भी रहते हैं, जो ब्रिटेन की सभ्यता और संस्कृति के वाहक हैं, वहां की राजनीति और आर्थिक विकास में अमूल्य योगदान देते हैं।

ऐसे देश में भी अगर भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरती जाती है या भारत के साथ धोखाधड़ी करके अपराधी वहां पनाह पाते हैं, उनके प्रत्यर्पण में पेच फंसा रहता है, तो दोनों देशों के रिश्तों में कमजोरी आना स्वाभाविक है। ब्रिटेन इस बात से अनजान नहीं है कि खालिस्तान की मांग करने वाले दरअसल भारत विरोधी तत्त्व हैं और वे भारत में हिंसक गतिविधियों के लिए युवाओं को बरगलाते हैं। खालिस्तान की मांग करने वालों के नेता ब्रिटेन में ही रहते हैं। अगर उन पर नकेल कसी जाए, तो भारत में अलगाववाद की चिंगारी को हवा मिलनी बंद हो जाएगी। प्रधानमंत्री की ऋषि सुनक से बातचीत के बाद स्वाभाविक ही इस बात की उम्मीद बनी है कि वहां भारत विरोधी ताकतों पर शिकंजा कसने की कोशिश होगी।