अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी करके चिंता जताई है कि भारत से सटी सीमा पर चीन अपनी सैन्य मौजूदगी तेजी से बढ़ा रहा है। वह विभिन्न देशों में अपना आधार मजबूत कर रहा है, खासकर पाकिस्तान में सैन्य साजो-सामान और परमाणु हथियारों का केंद्र बना रहा है। हालांकि अमेरिका ने यह खुलासा नहीं किया है कि इसके पीछे असली वजह क्या है, चीन की अपनी आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने की मंशा या फिर बाहरी सुरक्षा। पर इस अमेरिकी रिपोर्ट से भारत की चिंता बढ़नी स्वाभाविक है। भारत और चीन के बीच अक्साईचिन को लेकर करीब चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा पर विवाद है। अनेक मौकों पर चीनी सैनिक भारतीय सीमा के काफी भीतर तक घुस कर यह जताने की कोशिश कर चुके हैं कि वह इलाका उनका है। पिछले साल उत्तरी लद्दाख के काफी अंदर तक भारतीय सीमा में घुस कर चीनी सैनिकों ने अपने तंबू गाड़ दिए और सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया। तब दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच पांच दिन तक चली बैठक के बाद चीनी सेना वापस लौटी। तब कहा गया कि चीनी सैनिक नियमित अभ्यास के लिए उस इलाके में आए थे। इस तरह जब-तब चीनी सैनिकों की गतिविधियों के चलते भारतीय सीमा पर तनाव का वातावरण उपस्थित हो जाता है। इसलिए चीन के इरादे को लेकर कुछ भी साफ-साफ कह पाना मुश्किल है। अमेरिका ने इस मामले में भारत के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया है, मगर सवाल है कि इस रिपोर्ट को लेकर भारत को किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए।

पाकिस्तान के साथ चीन के दोस्ताना रिश्ते छिपे नहीं हैं, पर भारत से उसकी दूरी के पीछे वजह सिर्फ सीमा विवाद नहीं है। अमेरिका ने रेखांकित किया है कि भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में सदस्यता का दावेदार है, जबकि चीन को यह नागवार गुजर रहा है। चीन अपने परमाणु कारोबार को विस्तृत करना चाहता है, इस बीच उसने अनेक परमाणु इकाइयां स्थापित की हैं। इसलिए अगर भारत परमाणु शक्ति के रूप में उभरता है तो चीन के बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए उसका ध्यान पाकिस्तान को केंद्र बनाने पर है। मगर अमेरिका की चिंता है कि अगर चीन ने पाकिस्तान में अपने परमाणु केंद्र स्थापित कर लिए तो आतंकवाद के बढ़ते खतरे के मद्देनजर यह ज्यादा घातक हो सकता है। मगर इसे रोकने का तरीका क्या हो सकता है, अमेरिका ने स्पष्ट नहीं किया है। अमेरिका और चीन के रिश्ते छिपे नहीं हैं। अगर चीन पाकिस्तान की मदद करता है तो अमेरिका भी इस मामले में पीछे नहीं है। अभी भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने को लेकर भले वह गंभीर दिख रहा हो, पर जब भी भारत ने आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान की तरफ से मिल रहे बढ़ावे को रोकने की गुहार लगाई है, अमेरिका का रवैया ढुलमुल ही रहा है। भारत की परमाणु जरूरतों के मद्देनजर उसका परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होना जरूरी है। इसके लिए उसे अमेरिका की मदद चाहिए। मगर भारत के लिए चीन की अहमियत भी कम नहीं है। चीन से न सिर्फ उसके कारोबारी रिश्ते बेहतर हैं, वह भारत में निवेश बढ़ाने का इच्छुक है, बल्कि उसके साथ सांस्कृतिक संबंध भी हैं। जहां तक सीमा विवाद का मामला है, दोनों देशों के बीच इसे लेकर समझौता है और उसे बातचीत के जरिए हल कर लिया जाता रहा है। इसलिए सामरिक तनातनी का माहौल बना कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा।