यह शायद पहला मौका है जब किसी आतंकी हमले की जांच के सिलसिले में पाकिस्तान की टीम भारत आई। इसलिए यह विचित्र लग सकता है। जनवरी में पठानकोट के वायुसेना ठिकाने पर हुए आतंकी हमले की जांच के वास्ते पाकिस्तानी टीम के आने पर स्वाभाविक ही कई सवाल उठे हैं। मसलन, पाकिस्तान की जांच टीम को क्यों आने दिया गया। इस जांच से क्या हासिल होगा। क्या पाकिस्तान जांच को लेकर संजीदा है और उसे तर्कसंगत परिणति तक ले जाने को तैयार होगा? अगर उससे सच्चाई को कबूल करने और उसके अनुरूप कदम उठाने की उम्मीद नहीं की जा सकती, तो यह व्यर्थ की कवायद क्यों? इन सवालों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। पर चाहें तो इस मामले को आशावादी दृष्टिकोण से भी देख सकते हैं। पाकिस्तान की जांच टीम के आने की घोषणा पिछले दिनों विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने काठमांडो में विदेश मामलों में पाकिस्तान सरकार के सलाहकार सरताज अजीज से मुलाकात के बाद की थी। हो सकता है इस मुलाकात में उन्हें पाकिस्तान के रवैए में बदलाव आने का भरोसा जगा हो। कुछ दूसरे सकारात्मक संकेत भी हैं। हाल में कई आतंकी साजिशों के बारे में पाकिस्तान सरकार ने भारत को सूचित किया और उन्हें समय रहते नाकाम किया जा सका। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने मुल्क की जमीन पर आतंकवाद को समूल उखाड़ फेंकने का संकल्प पिछले दिनों बार-बार दोहराया है। फिर भी यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि पाकिस्तानी जांच टीम की इस यात्रा का कोई सार्थक परिणाम निकलेगा ही। भारत ने नवंबर 2008 के मुंबई हमले से जुड़े ढेर सारे सबूत पाकिस्तान को सौंपे थे? क्या कार्रवाई हुई? पठानकोट मामले में जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने के तथ्य उजागर हो चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान ने जैश के सरगना अजहर मसूद के खिलाफ अब तक कुछ नहीं किया है।

अलबत्ता, अपनी जांच टीम की इस यात्रा के जरिए पाकिस्तान की दिलचस्पी दुनिया को यह दिखाने में होगी कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक विश्वसनीय साझेदार है और उसकी मंशा पर शक नहीं किया जाना चाहिए। पाकिस्तान यह कूटनीतिक लाभ हासिल करना चाहता है तो करे, कोई हर्ज नहीं, पर इसका पुख्ता आधार होना चाहिए। अब तक भारत का अनुभव यह रहा है कि आतंकी घटनाओं की बाबत जब भी पाकिस्तान की जवाबदेही की बात उठी है, हर बार उसने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया है कि इन्हें गैर-राजकीय तत्त्वों ने अंजाम दिया, जो उसकी नुमाइंदगी नहीं करते। लेकिन आईएसआई को गैर-राजकीय तत्त्व कैसे कहा जा सकता है, जो पाकिस्तानी फौज की खुफिया एजेंसी है। कई मामलों की जांच से लेकर हेडली की गवाही तक आईएसआई की संदिग्ध भूमिका सामने आती रही है। ऐसे में कोई पाकिस्तानी जांच एजेंसी क्या कर सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि वह भारत की ओर से सौंपे गए सबूतों को ही नाकाफी ठहरा दे और कार्रवाई के तकाजे को ठंडे बस्ते में डाल दे? अगर ऐसा हुआ तो राजग सरकार की बहुत किरकिरी होगी; पाकिस्तानी जांच टीम को आने देने के निर्णय का बचाव करना उसके लिए बहुत कठिन होगा। लेकिन इस जोखिम का अंदाजा सरकार को न रहा हो, यह नहीं कहा जा सकता। दरअसल, उसने पाकिस्तान को एक मौका दिया है, आतंकी गुटों के खिलाफ अपनी सक्रियता साबित करने और यह भरोसा दिलाने का कि उसके साथ नई शुरुआत हो सकती है।