अब यह जगजाहिर है कि पिछले कुछ सालों के दौरान वैश्विक स्तर पर भारत के प्रभाव में विस्तार हुआ है और दुनिया के कई देश कूटनीति से लेकर कारोबार के मोर्चे पर भारत के साथ साझेदारी की नई राह तलाश रहे हैं। पिछले हफ्ते भारत और संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई के बीच हुए समझौते को इसी क्रम में देखा जा सकता है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में कारोबार पर सहमति बनी है।

हालांकि इस दिशा में पहलकदमी के प्रयास पहले से चल रहे थे और उम्मीद थी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खड़ी हो रही आर्थिक चुनौतियों और बदलते समीकरण के बीच भारत और यूएई इस मामले में कोई ठोस कदम उठाने जा रहे हैं। लेकिन इसी क्रम में प्रधानमंत्री की यूएई की ताजा यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अपनी अपनी मुद्रा में कारोबार को बढ़ावा देने पर हुआ करार अब वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में एक नया अध्याय रच सकता है।

इस समझौते के महत्त्व को प्रधानमंत्री ने खुद भी रेखांकित किया कि यह दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक सहयोग और आपसी विश्वास को दर्शाता है। गौरतलब है कि पिछले साल व्यापक आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से भारत-यूएई व्यापार में बीस फीसद की बढ़ोतरी देखी गई।

अब ताजा समझौते के अमल में आने का प्रत्यक्ष असर यह होगा कि भारत और यूएई में आपसी कारोबार में बढ़ोतरी के साथ-साथ लेनदेन और भुगतान में कम समय लगेगा और आयातकों-निर्यातकों को डालर का इंतजाम किए बिना भुगतान करने में सुविधा होगी। इसके अलावा, मुद्रा बाजार में रुपए और दिरहम में निवेश करने का विकल्प भी खुलेगा और पर्यटन सुविधाजनक होगा।

कहा जा सकता है कि जिस दौर में अमेरिका अपनी मुद्रा डालर के प्रभाव के बूते वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव कायम रखे हुए है, उसमें भारत और यूएई के बीच अपनी अपनी स्थानीय मुद्रा में कारोबार पर बनी सहमति कूटनीति स्तर पर एक नया परिदृश्य रचेगा। दरअसल, अमेरिकी डालर के वर्चस्व की वजह से पहले से ही कुछ देशों की ओर से कारोबार के मोर्चे पर नए समीकरण खड़ा करने की कोशिश चल रही है।

कुछ बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश वैश्विक स्तर पर कारोबार के ढांचे में अमेरिकी डालर का विकल्प तलाश रहे हैं। इसमें खासतौर पर रूस, चीन, भारत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं। यहां तक कि बांग्लादेश जैसे छोटे एशियाई देश भी आपस में व्यापार के लिए स्थानीय मुद्रा को तरजीह दे रहे हैं।

यह छिपा नहीं है कि वैश्विक स्तर पर कारोबार जगत में कई स्तर पर उतार-चढ़ाव चल रहे हैं। एक समय डालर पर निर्भर दुनिया अब नए विकल्पों का रुख कर रही है। इसका कारण संभवत: यह हो सकता है कि हाल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के अलग-अलग ध्रुव खड़े हो रहे हैं और उसी मुताबिक आर्थिक जगत में भी नया स्वरूप तैयार हो रहा है।

इसमें भारत की भूमिका तेजी से बढ़ रही है। रूस से तेल खरीदने के लिए भारत और यूएई दिरहम और रूबल का उपयोग कर रहे हैं। उधर चीन के भी हाल में युआन से 88 अरब डालर का रूसी तेल, कोयला और धातु खरीदने की खबर आई थी। बल्कि वैश्विक स्तर पर विदेशी मुद्रा लेनदेन में युआन की हिस्सेदारी बढ़कर सात फीसद पर पहुंच गई है।

इस लिहाज से देखें तो भारत और यूएई के बीच हुआ ताजा समझौता मील का पत्थर साबित हो सकता है। इस करार को पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों में आई नई गरमाहट की अगली कड़ी माना जा सकता है।