सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने के लिए बार-बार कहने पर भी सार्थक नतीजे नहीं निकले हैं, तो इसकी वजह क्या हो सकती है, इसे समझा जा सकता है। दरअसल, कोई बड़ी दंडात्मक कार्रवाई न होने से प्राय: अधिकारी अपनी संपत्ति का ब्योरा देने से कतराते हैं। ऐसे में, संसद की एक स्थायी समिति ने निर्धारित समय सीमा में ब्योरा दाखिल न करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई का सुझाव देकर स्पष्ट कर दिया है कि उनमें कहीं न कहीं पारदर्शिता की कमी है।
हैरत की बात है कि निर्देश के बावजूद वर्ष 2024 में इक्यानबे अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा दाखिल किया। जबकि इससे पहले तिहत्तर अधिकारियों ने ही ऐसा किया था। बड़े अधिकारी ब्योरा देने से बच रहे हों, तो जाहिर है कि कहीं न कहीं उनमें ईमानदारी का अभाव है। अगर कोई भ्रष्ट आचरण नहीं किया, तो फिर अपनी अचल संपत्ति की जानकारी देने से क्यों गुरेज?
जवाबदेही से बचने का प्रयास करते हैं अधिकारी
वे कुछ छिपा रहे हैं, तो कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। ऐसे में अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठना स्वाभाविक है। कोई दो मत नहीं कि ऐसे अधिकारी ही जवाबदेही से बचने का प्रयास करते हैं। जब ऊपरी स्तर पर जवाबदेही नहीं दिखेगी, तो निचले स्तर पर क्या उम्मीद की जा सकती है।
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यह तय है कि ईमानदारी, पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना कहीं भी सुशासन की उम्मीद नहीं की जा सकती। अगर कोई अधिकारी आदेश के अनुपालन में लापरवाही बरतता है, तो उसके खिलाफ निस्संदेह कार्रवाई होनी चाहिए। संसद की स्थायी समिति का यह सुझाव उचित है कि संपत्ति का ब्योरा दाखिल करने के लिए एक निगरानी तंत्र स्थापित हो और इसमें एक कार्यबल का गठन किया जाए, जो ब्योरा दाखिल न करने वाले अधिकारियों पर नजर रखे।
सरकारी तंत्र में जवाबदेही सुनिश्चित होनी ही चाहिए
इसके बाद आगे की प्रक्रिया तय होगी। सरकारी तंत्र में जवाबदेही सुनिश्चित होनी ही चाहिए। संसदीय समिति को इसी जवाबदेही की चिंता है। बेहतर होता कि बजाय कार्रवाई के डर से, अधिकारी स्वेच्छा से अपनी संपत्ति की सूचना देते। समिति की सिफारिश के बाद उम्मीद की जा सकती है कि इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएं।