अपने देश से बाहर जमा काले धन को लेकर पहले भी खुलासा हुआ है। मसलन, यूपीए सरकार के दौरान फ्रांस ने स्विट्जरलैंड के उन गुप्त खातों की जानकारी दी थी, जो कुछ भारतीयों से संबंधित थे। इसी तरह एक और ‘टैक्स हैवन’ देश में खोले गए गुप्त खातों के बारे में जर्मनी ने बताया था। फिर, एचएसबीसी के खाते लीक हुए। पर ताजा खुलासा शायद सबसे बड़ा है, जो खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘इंटरनेशल कंसार्शियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स’ (आईसीआईजे) की गहन छानबीन का नतीजा है। पनामा पेपर्स के नाम से जारी हुए ये खुलासे बताते हैं कि काले धन का साम्राज्य कितना बड़ा है। विदेशों में काला धन जमा करने वालों की इस सूची में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबियों से लेकर मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक तक शामिल हैं। इस सूची में पांच सौ भारतीय भी शामिल हैं जिनमें कुछ राजनीतिकों के अलावा उद्योग तथा सिनेमा की कई हस्तियों के भी नाम हैं।
आईसीआईजे ने मध्य अमेरिकी देश पनामा में स्थित दुनिया की चौथी सबसे बड़ी लॉ फर्म ‘मोसेक फोनसेका’ के एक करोड़ दस लाख दस्तावेजों की छानबीन पर आधारित जो रिपोर्ट जारी की है उसने एकबारगी दुनिया भर को चौंका दिया है। अभी कुछ और खुलासे हो सकते हैं। क्या पता कुछ और भी बड़ी हस्तियों के नाम सामने आएं। जो धंधा पूरी तरह चोरी-छिपे चलता है उसके दस्तावेज हासिल और उजागर करना वाकई हैरत की बात है। सवाल है इस खुलासे से क्या हासिल होगा? लोकसभा चुनाव में विदेशों में जमा काले धन की वापसी एक बड़ा मुद््दा था। केंद्र की सत्ता में आने के सौ दिनों के भीतर काला धन वापस लाने और हर गरीब भारतीय के खाते में पंद्रह लाख रुपए जमा कराने का वादा तो नरेंद्र मोदी पूरा नहीं कर पाए, पर काले धन का पता लगाने के लिए एक एसआईटी जरूर गठित कर दी। अलबत्ता इसका ज्यादा श्रेय सुप्रीम कोर्ट को जाता है जिसने एसआईटी के गठन के लिए समय-सीमा पहले से तय कर रखी थी।
सरकार ने दूसरे अहम कदम के तौर पर पिछले साल एक योजना पेश की, जिसके तहत विदेश में जमा अघोषित संपत्ति या धन की घोषणा तीन महीने के भीतर करके और उस पर टैक्स चुका कर माफी पाई जा सकती थी। उम्मीद की जा रही थी कि काले धन को लेकर मोदी सरकार के घोषित सख्त रवैए के चलते इस योजना से बड़ी मात्रा में काला धन सामने आएगा। पर चार हजार करोड़ रुपए से कम की राशि घोषित हुई। तभी यह लगने लगा था कि बड़ी मछलियां इस योजना में शामिल नहीं हुर्इं। क्या वास्तव में उनके साथ वैसी ही सख्त कार्रवाई होगी, जिसका प्रावधान संशोधित कानून में है? रसूख वाले लोगों से जुड़े मामलों में कानून किस तरह से काम करता है, यह किसी से छिपा नहीं है। सरकार ने एलान किया है कि नवगठित मल्टी एजेंसी ग्रुप खुलासे के तौर पर आ रही सूचनाओं पर नजर रखेगा। एसआईटी ने भी इन तथ्यों पर गौर करने की बात कही है। इस सब का आखिरकार क्या नतीजा निकलेगा, अभी से कैसे कहा जा सकता है! पर सवाल है कि देश के भीतर काले धन के स्रोतों को बंद करने, उसके प्रवाह और प्रक्रियाओं को रोकने की कार्रवाई तत्परता और दृढ़ता से क्यों नहीं होती, जिसके लिए किसी अंतरराष्ट्रीय संधि या समझौते की जरूरत नहीं है