भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान का रुख हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। पिछले हफ्ते उसने कहा था कि जाधव ने अपनी फांसी की सजा पर पुनर्विचार याचिका दायर करने से इनकार कर दिया है। इस पर भारत सरकार ने सख्त आपत्ति जताई तो उसने भारतीय राजनयिकों के जाधव से मिलने की इजाजत दे दी।

वृहस्पतिवार को पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग के दो अधिकारी उनसे मिलने गए, मगर उन्हें पुनर्विचार याचिका संबंधी कागजात पर दस्तखत लेने से रोक दिया गया। जिस जगह जाधव और राजनयिकों की मुलाकात कराई गई वहां हर वक्त पाकिस्तानी सेना के अधिकारी मौजूद रहे।

वहां कैमरे लगाए गए थे और रिकार्डिंग की व्यवस्था थी। यह अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है। स्वाभाविक ही भारतीय अधिकारियों ने इस पर एतराज जताया, पर उनकी एक न सुनी गई। लिहाजा, वे अधिकारी नाराज होकर वापस लौट आए। यानी कुल मिला कर पाकिस्तान ने भारत की जाधव तक राजनयिक पहुंच सुनिश्चित कराने संबंधी मांग को मान तो लिया, पर उसने वही किया जो वह करना चाहता है। पाकिस्तानी सेना किसी भी तरह जाधव को फांसी पर लटका कर यह साबित करने पर तुली है कि जाधव भारत के लिए जासूसी करता था।

जाधव को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और करीब तीन साल पहले पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी। अनेक दस्तावेजों के जरिए भारत सरकार ने साबित किया कि जाधव भारतीय जासूस नहीं है, मगर सैन्य अदालत ने उन दस्तावेजों को सिरे से खारिज कर अपनी मर्जी के मुताबिक फैसला सुना दिया। तब भारत सरकार ने उस फैसले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में चुनौती दी। तमाम पहलुओं की जांच के बाद हेग स्थित अदालत ने पाकिस्तान सरकार को आदेश दिया कि वह जाधव को इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की सहूलियत दे। उन तक भारतीय राजनयिकों की पहुंच सुनिश्चित करे।

मगर पाकिस्तान उस आदेश के पालन से बचने के रास्ते निकालता रहा। जाधव तक राजनयिक पहुंच और पुनर्विचार याचिका रोकने के लिए तरह-तरह की बाधाएं खड़ी करता रहा। अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेश के बाद पाकिस्तान सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था कि जाधव दो महीने के भीतर पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं, जिसकी इस महीने की सत्रह तारीख तक समय सीमा थी।

इस बीच भारत सरकार लगातार मांग करती रही कि जाधव को वकील उपलब्ध कराया जाए, उन तक राजनयिक पहुंच दी जाए, मगर उसने वह मांग नहीं मानी। अंतिम तारीख समाप्त होने से एक दिन पहले उसने राजनयिक पहुंच की इजाजत दी, पर उसका कोई अर्थ नहीं रहा।

पाकिस्तान के इस रवैए से उसकी मंशा साफ जाहिर है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की नजर में उसने यह दिखाने की कोशिश की कि उसके आदेश का पालन किया गया। फिर यह भी कि जाधव खुद सैन्य अदालत के फैसले को पाकिस्तान उच्च न्यायालय में चुनौती नहीं देना चाहते थे। मगर इस तरह वह अपने झूठ को छिपाने में शायद ही कामयाब हो पाए।

अब तक के अनुभवों से जाहिर है कि जासूसी के आरोप में पकड़े गए भारतीय नागरिकों के साथ पाकिस्तान किस कदर यंत्रणापूर्ण व्यवहार करता और उनसे अपने पक्ष में बयान उगलवाता रहा है। जाधव के साथ भी उसका व्यवहार इससे अलग नहीं माना जा सकता। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय खुद कह चुका है कि जाधव के मामले में पाकिस्तानी सैन्य न्यायालय ने मनमानी भरा फैसला सुनाया है। भारतीय राजनयिकों से मुलाकात के समय भी जाधव खासे तनाव में देखे गए। इन सब तथ्यों को पाकिस्तान कैसे छिपा पाएगा!