मंगलवार को नई दिल्ली में भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की मुलाकात में कुछ ऐसा नहीं हुआ जिसे विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार की कोई उपलब्धि कहा जा सके। अधिक से अधिक यह हुआ कि पठानकोट हमले की वजह से बातचीत की जो पहल रुक गई थी उसे फिर से पटरी पर लाने की कवायद शुरू हो गई। दोनों पक्षों को अंदाजा रहा होगा कि विदेश सचिवों की इस मुलाकात से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। शायद इसीलिए सीधे द्विपक्षीय वार्ता आयोजित करने के बजाय एक बहुपक्षीय सम्मेलन के दौरान अलग से मिलने का तय किया गया। मंशा यही रही होगी कि भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय वार्ताओं को लेकर अमूमन जैसी सघन चर्चा और मीडिया की बेहद दिलचस्पी का माहौल रहता है उससे बचा जा सके।
यह बहुपक्षीय आयोजन था ‘अफगानिस्तान का भविष्य’ विषय पर ‘हॉर्ट आॅफ एशिया’ नाम से एक सम्मेलन का। यह पहला मौका नहीं है जब बातचीत की गुंजाइश पैदा करने के लिए दोनों देशों ने किसी बहुपक्षीय बैठक के दौरान अलग से मेल-मुलाकात का तरीका अपनाया हो। पड़ोसी देशों से संबंध सुधार की प्रक्रिया को गति न मिलते देख पिछले साल प्रधानमंत्री ने विदेश सचिव जयशंकर को पाकिस्तान समेत दक्षिण एशियाई देशों की यात्रा पर भेजा था।
इससे अगस्त में दोनों तरफ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का रास्ता साफ हुआ था। मगर एजेंडे को लेकर तनातनी के कारण वह बैठक रद्द कर दी गई। मोदी ने पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने के लिए एक बार फिर बहुपक्षीय मंच का चुनाव किया- पिछले साल दिसंबर में पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान वे अलग से नवाज शरीफ से मिले। यह मुलाकात रंग लाई। दोनों तरफ के विदेश सचिवों की बैठक के लिए पंद्रह जनवरी की तारीख मुकर्रर हो गई। लेकिन दो जनवरी को पठानकोट के वायुसैनिक ठिकाने पर हुए आतंकी हमले ने सारे किए-धरे पर पानी फेर दिया। भारत ने प्रस्तावित बैठक रद््द कर दी।
यह पठानकोट हमले का ही असर है कि भारत ने सीधे द्विपक्षीय बैठक आयोजित करने से बचना चाहा है। इस बीच अपने यहां भारत के एक कथित जासूस को पकड़ने के पाकिस्तान के दावे की वजह से भी कुछ खटास पैदा हुई। मोदी सरकार ने पाकिस्तान के इस आरोप को गलत बताया कि पकड़ा गया व्यक्ति भारतीय जासूस है और भारत बलूचिस्तान में दखलंदाजी कर रहा है। पर जहां चाह वहां राह की तर्ज पर पाकिस्तान की जांच टीम को पठानकोट आने देकर फिर से संवाद की गुंजाइश निकाली गई। पर पाकिस्तान ने भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी को अपने यहां आने देने और पठानकोट मामले की जांच के सिलसिले में संदिग्धों से पूछताछ करने देने की इजाजत अभी तक नहीं दी है।
बहरहाल, जयशंकर और ऐजाज अहमद चौधरी की मुलाकात में, जैसी कि अपेक्षा थी, भारत ने पठानकोट मामले की जांच और 26/11 के आरोपियों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया को जल्द से जल्द तार्किक परिणति तक पहुंचाने की मांग की, तो पाकिस्तान ने एक बार फिर दोहराया कि कश्मीर उसके लिए मुख्य मुद््दा है और इसे द्विपक्षीय वार्ता के एजेंडे में शामिल करना ही होगा। मजे की बात यह कि पाकिस्तान ने दोनों तरफ के विदेश सचिवों की बातचीत पूरी होने का इंतजार नहीं किया, उसके पहले ही उसने समग्र वार्ता के एजेंडे में कश्मीर को शामिल करने की अपनी उतावली दर्शाने वाला बयान जारी कर दिया। जाहिर है, द्विपक्षीय एजेंडा तय करना आसान नहीं होगा।