पाकिस्तान और ईरान ने एक-दूसरे की जमीन पर हमले कर एक नए संघर्ष को जन्म दे दिया है। हालांकि अब दोनों देश संतुलित प्रतिक्रिया दे रहे हैं और उनका दावा है कि वे इस संघर्ष को आगे नहीं बढ़ाना चाहते। मगर इससे विश्व राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है। ये हमले ऐसे वक्त में हुए हैं, जब दोनों देश अपनी सीमा में सक्रिय अलगाववादी समूहों को खत्म करने के लिए साझा रणनीति पर काम करने के लिए सहमति बना रहे थे।

दावोस में ईरान के विदेश मंत्री जब पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री से मिले तो दोनों ने इसी मसले पर बातचीत की। मगर उसके एक दिन बाद ही ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में हमला कर दिया। उसके जवाब में दो दिन बाद पाकिस्तान ने भी ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान वाले इलाके में गोले दाग दिए। दोनों का दावा है कि उन्होंने उन इलाकों में सक्रिय अलगाववादी समूहों को खत्म करने के मकसद से हमला किया, उनका लक्ष्य नागरिक ठिकाने कतई नहीं थे। हालांकि मीडिया रिपोर्टों में खुलासा हुआ है कि इन हमलों में दोनों तरफ के नागरिक भी मारे गए और घायल हुए हैं।

हालांकि पाकिस्तान और ईरान के बीच विवाद नया नहीं है। दोनों के बीच करीब नौ सौ किलोमीटर की साझा सीमा है, जिसके दोनों तरफ बलूच समुदाय के लोग रहते हैं और वे दोनों मुल्कों के खिलाफ हैं। वे अपना स्वायत्त शासन चाहते हैं। उन इलाकों में सक्रिय आतंकवादी संगठन दोनों देशों पर हमले करते रहे हैं। पिछले महीने ही जैश अल-अदल आतंकी संगठन ने ईरान के सुरक्षा बलों पर हमला किया था, जिसमें ग्यारह ईरानी पुलिस मारे गए थे।

इसी तरह पाकिस्तान पर भी अलगाववादी हमले करते रहे हैं। ईरान का कहना है कि उसके खिलाफ आतंकी गतिविधियां चलाने वाले संगठनों के ठिकाने पाकिस्तान वाले इलाके में हैं। इसलिए उसने उन पर हमला किया। पाकिस्तान ने भी इसी तर्क पर ईरान की जमीन पर हमला किया। जबकि हकीकत यह है कि ईरान के हमले के बाद पाकिस्तान के लोगों में खासी नाराजगी उभरी थी और चुनाव के माहौल में वहां की सरकार उस हमले को नजरअंदाज नहीं कर सकती थी। उसने ईरान पर जवाबी हमला कर दिया।

हालांकि अगर दोनों का मकसद आतंकवादी समूहों पर काबू पाना होता, तो साझा रणनीति के तहत आगे बढ़ते। मगर ईरान की मंशा इससे बिल्कुल अलग है। पाकिस्तान पर हमले से पहले उसने इराक और सीरिया की जमीन पर भी गोले दागे थे। इससे साफ है कि वह उस इलाके में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है।

विचित्र है कि दोनों देश आतंकवाद के सफाए के नाम पर एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए हैं, जबकि ये खुद दूसरे देशों में आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे हैं। पाकिस्तान की भारत को अस्थिर करने की कोशिशें छिपी नहीं हैं। ईरान को अपने खिलाफ सिर उठाने वाले बलूच विद्रोही तो पसंद नहीं, पर वह खुद इजराइल के खिलाफ लड़ रहे हिजबुल्ला और यमन में होथी विद्रोहियों का खुला समर्थन करता है।

ईरान और पाकिस्तान के बीच ताजा हमलों से पैदा तनाव बेशक कुछ समय में सामान्य हो जाए, पर अमेरिका और इजराइल की नाराजगी उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। आतंकवाद को लेकर दो तरह का नजरिया नहीं हो सकता। जब तक ये दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ साफ मन से मैदान में नहीं उतरते, तब तक बलूचिस्तान में धधक रही आतंकवाद की आग पर काबू पाना उनके लिए कठिन बना रहेगा।