पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट के विस्तार के साथ ओटीटी मंचों पर भी हास्य कार्यक्रमों के नाम पर जिस तरह फूहड़ और अश्लील सामग्री परोसी जाने लगी है, वह कई बार मानसिक विकृति से भरी होती है। हाल ही में एक ओटीटी मंच पर एक कथित हास्य कलाकार के कार्यक्रम में जैसी बातचीत सामने आई, उसे किसी भी लिहाज से स्वस्थ मनोरंजन नहीं माना जा सकता। विडंबना है कि ऐसे कार्यक्रमों के दर्शक भी बिना किसी हिचक के कुंठाओं के प्रदर्शन में शामिल होते हैं। हालांकि समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी हास्य के नाम पर अश्लीलता को मानवीय गरिमा के विरुद्ध मानता है और स्वाभाविक ही इस मसले पर व्यापक आपत्ति उभरी।

सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित कथित कलाकार के प्रति नाराजगी जाहिर की। अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस मसले पर सख्त रुख अपनाते हुए ओटीटी मंचों को आचार संहिता और कानून का पालन करने का निर्देश दिया है। अश्लील सामग्री का प्रकाशन एक दंडनीय अपराध है। मंत्रालय के नोटिस में कहा गया है कि ओटीटी मंचों पर किसी भी सामग्री के प्रदर्शन में लागू कानूनों के विभिन्न प्रावधानों और आइटी नियम, 2021 के तहत ‘कोड आफ एथिक्स’ का ध्यान रखा जाए।

हास्य और मनोरंजन सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन अगर इसकी वजह से लोगों के सोचने-समझने की प्रक्रिया विकृत होती है, यौन कुंठाओं की एक नई दुनिया बनती है, तो वह किसी भी समाज के लिए नुकसानदेह है। दरअसल, सामाजिक व्यवहार और इसके बारे में आम धारणा का विकास लोगों के सोचने-समझने के तरीके और उसकी अभिव्यक्तियों के सहारे होता है। ऐसे में अगर कुछ विशेष सुविधाओं में जीने वाले लोग अपनी सार्वजनिक अभिव्यक्तियों में हास्य के नाम पर अश्लीलता का बेहिचक प्रदर्शन करते हैं, तो निश्चित रूप से यह एक प्रतिगामी रवैया है। सवाल है कि महज हास्य के तर्क पर क्या किसी ऐसी प्रवृत्ति की इजाजत दी जानी चाहिए जो न केवल लोगों के भीतर कुंठा भरने का जरिया बनती, बल्कि उसी वजह से महिलाओं के खिलाफ आपराधिक वृत्ति का भी प्रसार होता है!