पिछले कुछ समय से किसी परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले विद्यार्थी सुर्खियों में रहे हैं और उनकी प्रतिभा के बारे में जितनी खबरें आर्इं, वे नए विद्यार्थियों या प्रतियोगियों के लिए उपयोगी थीं। लेकिन बिहार में इंटरमीडिएट परीक्षा के परिणामों की घोषणा के बाद चर्चा का विषय यह है कि इसमें शीर्ष पर आने वाले विद्यार्थियों ने कैसे यह स्थान प्राप्त किया होगा! हाल ही में इंटरमीडिएट के नतीजों में कला संकाय की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाने वाली रूबी कुमारी से जब कुछ पत्रकारों ने परीक्षा से संबंधित साधारण सवाल किए तो वह नहीं बता पाई। इसी तरह, विज्ञान संकाय में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले सौरव श्रेष्ठ को भी अपने विषय से संबंधित बहुत मामूली जानकारी तक नहीं थी।

खबरें आने के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा, तब बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने कला और विज्ञान परीक्षा के नतीजों पर रोक लगाते हुए इन संकायों में पहले सात स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को दोबारा जांच के लिए बुलाया। मगर सवाल है कि कैसे यह संभव हुआ कि जिन विद्यार्थियों का अपने विषयों के बारे में जानकारी का स्तर इतना कमजोर है, उन्होंने परीक्षा की कॉपियों में सवालों के जवाब इस तरह दिए कि उन्हें पचासी या नवासी फीसद अंक मिले और वे सबसे आगे रहे!

निश्चित तौर पर यह एक व्यापक गड़बड़ी का नतीजा है, जिसमें अकेले परीक्षार्थी को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। पिछले साल ऐसी ही एक परीक्षा में व्यापक रूप से गड़बड़ी होने की खबरें फैलने के बाद सरकार ने इस बार पूरी तरह साफ-सुथरी परीक्षा आयोजित कराने का फैसला किया था और काफी हद तक इसमें कामयाबी भी मिली। यहां तक कि सख्ती के चलते कई जगहों पर स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया था। मगर तमाम चौकसी के बावजूद बिहार की परीक्षा प्रणाली पर इस बार कहीं ज्यादा ही सवाल उठ रहे हैं, यहां तक कि वह जगहंसाई का विषय बन गई है।

दूसरा पहलू यह भी है कि बारहवीं में पढ़ने वाले किसी स्कूल के नियमित विद्यार्थी को अगर बहुत साधारण जानकारियां भी नहीं हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेवार है? स्वयंसेवी संगठन ‘प्रथम’ के अध्ययनों में कई साल से एक ही तरह के निष्कर्ष सामने आ रहे हैं कि पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थी ठीक से दूसरी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ पाते। क्या यह समूची शिक्षा-व्यवस्था और पद्धति पर सवाल नहीं है? जहां तक परीक्षाओं में गड़बड़ी और नतीजों का सवाल है, तो इसका दायरा व्यापक है।

ऐसे मामले अक्सर उजागर होते रहे हैं जिनमें किसी परीक्षार्थी की जगह दूसरे विद्यार्थी ने परीक्षा दी। मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आयोजित परीक्षाओं में भी संगठित तौर पर नकल करने-कराने या परचे लीक करने के मामले कई बार पकड़ में आए। नकल के लिए जिस तरह उच्च तकनीकी का सहारा लिए जाने की घटनाएं हुर्इं, उसके मद््देनजर हाल में चिकित्सा पाठ्यक्रम के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा में विद्यार्थियों के बैठने के लिए कोई आवश्यक सामान ले जाने से लेकर कपड़े पहनने तक के मामले में भी कई शर्तें लगाई गई थीं। जाहिर है, बिहार अपवाद नहीं है, और परीक्षाओं पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में सोचने की जरूरत है।