सड़क पर लापरवाही से वाहन चलाने से हुए हादसों से इतर मामूली बात पर हिंसा के रूप में एक समस्या दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है, जिसमें आए दिन किसी के साथ मारपीट या फिर हत्या तक कर देने के मामले सामने आ रहे हैं। बुधवार रात देश की सबसे बड़ी स्टील कंपनी भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के अध्यक्ष के साथ जिस तरह की घटना हुई, उससे साफ है कि सड़क पर वाहन चलाते हुए कोई व्यक्ति नाहक ही जानलेवा हिंसा का शिकार हो सकता है। दक्षिणी दिल्ली के हौज खास इलाके से जब वे गुजर रहे थे, तब अचानक ही एक कार उनकी कार के आगे खड़ी हो गई, उसमें से चार लोग निकले और बिना किसी बात के उन्हें डंडों और लोहे की छड़ से पीटने लगे। गनीमत बस यही रही कि इलाके में गश्त कर रहे दो पुलिसकर्मियों की नजर उन पर पड़ गई और उन्होंने उन्हें बचाया। लेकिन कल्पना की जा सकती है कि अगर किन्हीं वजहों से गश्त कर रहे पुलिसकर्मी वहां नहीं पहुंचते तो सेल अध्यक्ष के साथ क्या हो सकता था!

हालांकि यह कोई पहली घटना नहीं थी जिसमें बिना किसी बात के सड़क पर मारपीट की गई हो। हो सकता है कि यह कोई सुनियोजित आपराधिक घटना भी हो। यह जांच के बाद ही साफ होगा। लेकिन ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं जिनमें बहुत छोटी चूक से वाहन अगर किसी अन्य गाड़ी में छू जाए या वाजिब कारणों से भी रास्ता बाधित हो जाए तो लोग थोड़ा धीरज नहीं रखते और एक दूसरे के साथ बेहद तल्ख भाषा में बहस करने लगते हैं। इसी दौरान कई बार दोनों या फिर एक पक्ष हिंसक हो जाता है और किसी की जान भी चली जाती है। सवाल है कि सड़क पर जिस तरह की गलतियां अनदेखी करने लायक होती हैं या फिर थोड़ी बातचीत से उससे उपजी समस्या को दूर किया जा सकता है, उस पर आपसी बहस का स्तर इस हद तक कैसे चला जाता है जिसमें किसी की जान भी चली जाती है! ऐसा लगता है कि लोगों के भीतर धीरज और सहिष्णुता का पैमाना इतना कम हो गया है कि वे मामूली बात पर भी गाली-गलौज या हिंसा पर उतर जाते हैं। बिना बात के गुस्सा होने के बाद उन्हें इसका भी होश नहीं रहता कि इसकी जद में आकर हिंसा करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।

हालांकि फिलहाल सड़क पर हिंसा के मामलों में जितनी और जिस प्रकृति की सजा है, उसकी वजह से खुद पर लगाम खोने वाले लोग शायद निश्चिंत रहते हैं। इसके अलावा, शहरी जीवन को रफ्तार के साथ जीने वाले लोग इसमें किसी तरह का खलल नहीं चाहते और सड़क पर मामूली बाधा से उनका धीरज छूट जाता है। यह एक तरह से खुद को श्रेष्ठ मानने की कुंठा से भी जुड़ा होता है जो थोड़ा-सा मौका पाते ही बेलगाम होकर फूट जाता है। नतीजतन, कई बार किसी को बुरी तरह हिंसा का शिकार होना पड़ता है तो किसी की जान भी चली जाती है। इसी के मद्देनजर हाल के दिनों में यह मांग तेजी से उठी है कि वाहन चलाते हुए अपने बर्ताव पर लगाम खोने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाएं, ताकि सड़क पर हिंसा की मानसिकता वाले लोगों को ठोस सबक मिल सके। सड़क पर सुविधाजनक और सहज तरीके से वाहन चलाना किसी का अधिकार हो सकता है, लेकिन अगर इसमें यातायात नियमों के साथ-साथ जरूरी सलीका नहीं है तो इससे हिंसा करने वाले के सभ्य होने पर भी सवालिया निशान लग सकते हैं!