दिल्ली में सोमवार को हुई एक घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर हमारा समाज किधर जा रहा है? किस तरह का समाज हम बना रहे हैं? पूर्वी दिल्ली के एक इलाके में मामूली-सी बात पर हुए झगड़े में चालीस साल के एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया। आरोपियों ने मारे गए व्यक्ति के बेटे और उसके दोस्त पर भी जानलेवा हमला किया। पूरे घटनाक्रम से ऐसा लगता है कि हमला करने वाले पूरी योजना से आए थे। लेकिन सरेराह एक आदमी की पीट-पीट कर हत्या यह बताती है कि कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है। आदमी को रास्ते में अपने लिए कोई खतरा महसूस हो, तो वह जल्द से जल्द ऐसी जगह पहुंचना चाहता है जहां लोगों की मौजूदगी हो। उसे लगता है ऐसी जगह होने पर खतरा टल जाएगा। क्योंकि औरों की मौजूदगी में कोई उस पर हमला या उसके साथ बदसलूकी नहीं करेगा। अगर यह मौजूदगी अपनी जान-पहचान के लोगों की हो, तो आश्वस्ति काफी बढ़ जाती है। पर भरोसा जगाने वाले इस तरह के खयाल अब कमजोर पड़ने लगे हैं।

दिनदहाड़े, लोगों की पर्याप्त मौजूदगी के बीच अपराध होने के मामले बढ़ रहे हैं। ताजा घटना में तो एक आदमी के पीट-पीट कर मारे जाने के समय आसपास के दर्जनों लोग मौजूद थे। पर वे मूकदर्शक बने रहे। इसलिए एक आदमी जो आसानी से बचाया जा सकता है, नहीं बचाया जा सका। कई बार बचाव न करने का कारण यह डर भी होता है कि कहीं कानूनी पचड़े में न पड़ना पड़े। लेकिन यह बात दूरदराज की घटना में ज्यादा लागू होती है। आस-पड़ोस के किसी आदमी को खतरे में देख कर उसे बचाने के लिए आगे आना तो हमारा सामाजिक संस्कार रहा है।

वह क्यों लुप्त होता जा रहा है? ऐसी घटनाओं के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि समाज में संवेदनहीनता व्यापक रूप से बढ़ रही है। अपराधों के बढ़ने का एक बड़ा कारण यही है। कई बार अपराध के समय पुलिस भी मूकदर्शक बनी रहती है। समाज किधर जा रहा है कि इसका चेताने वाला एक उदाहरण यह है कि राजस्थान के एक युवक ने बंगाल के एक मजदूर की हत्या कर दी, और उसकी हत्या का वीडियो भी सोशल मीडिया पर डाल दिया; फिर कुछ लोग इस हत्या पर खुशी जताने और हत्यारे के समर्थन में सभा करने वाले भी निकल आए। यह क्रूरता कहां से आ रही है, और हमारे समाज को कहां ले जाएगी!