महंगाई की वजह से पहले ही आम लोगों के सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी हैं। रोजमर्रा इस्तेमाल की चीजों की कीमतें इस कदर बेलगाम हुई हैं कि उनके उपभोग पर इसका साफ असर देखा जा रहा है। पिछले कुछ समय से महंगाई की वजह से टमाटर बहुत सारे लोगों की पहुंच से दूर हो चुका है। अब इस कड़ी में प्याज की कीमतों ने इस चिंता को नए सिरे से गहरा कर दिया है कि क्या लगातार महंगाई की मार से जूझते लोगों को फिलहाल कोई राहत नहीं मिलने जा रही!
गौरतलब है कि बाजार में प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका के मद्देनजर उसे नियंत्रित रखने के मकसद से केंद्र सरकार ने निर्यात पर इकतीस दिसंबर तक के लिए चालीस फीसद शुल्क लगा दिया था।
महाराष्ट्र के नासिक और अहमदनगर के किसानों ने थोक बाजार में बिक्री रोक दी
जाहिर है, सरकार की मंशा खुले बाजार में प्याज की उपलब्धता बढ़ा कर उसकी कीमतों को आम लोगों की पहुंच में बनाए रखने की थी। मगर निर्यात पर शुल्क लगाने के केंद्र के फैसले के विरोध में महाराष्ट्र के नासिक और अहमदनगर सहित कई इलाकों में किसानों ने थोक बाजार में रविवार को प्याज की बिक्री रोक दी।
किसानों की घोषणा से कीमतें शायद और बेलगाम होंगी
यानी सरकार के जिस कदम को प्याज की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए उठाया गया माना जा रहा था, उसके बाद किसानों ने जो घोषणा की, उसकी वजह से कीमतें शायद और बेलगाम होंगी। दरअसल, हाल के दिनों में प्याज के दाम में अचानक तेजी ने बहुत सारे लोगों को इसकी पहुंच से दूर कर दिया है।
कुछ रोज पहले बीस-पच्चीस रुपए किलो बिक रहा प्याज फिलहाल पचास रुपए प्रति किलो के आसपास पहुंच चुका है। इसी स्थिति को भांप कर सरकार ने इस पर लगाम लगाने के लिए निर्यात शुल्क में इजाफा कर दिया। मगर इस कदम को किसानों के हित के विरुद्ध माना जा रहा है, क्योंकि महाराष्ट्र के किसान इस बार प्याज के निर्यात से कुछ मुनाफे की उम्मीद कर रहे थे। अब चूंकि शुल्क में इजाफे के बाद निर्यात में गिरावट की स्थिति में स्थानीय थोक बाजार में भी व्यापारी इसकी कीमतें कम बताएंगे, तो इसका खमियाजा किसानों को उठाना पड़ेगा। सवाल है कि यह कैसे सुनिश्चित होगा कि एक ओर प्याज उत्पादक किसानों को भी कोई नुकसान न हो और दूसरी ओर आम लोगों को कम कीमत पर प्याज मिल सके!
गौरतलब है कि प्याज की नई फसल आमतौर पर अप्रैल-मई में आती है और उसके बाद इसकी कीमतों में नरमी आती है। मगर फिलहाल अलग-अलग क्षेत्रों के थोक और खुदरा बाजार में किल्लत की वजह से दिल्ली, असम, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की थोक मंडियों में दो हजार टन अतिरिक्त प्याज बेचा जा चुका है। यों प्याज के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में शीर्ष पर रहा है। सन 2021 में भारत में 26.6 लाख मिट्रिक टन प्याज का उत्पादन हुआ था। तब 24.2 लाख मिट्रिक टन के साथ चीन दूसरे नंबर पर रहा था।
विडंबना है कि किसानों को आमतौर पर अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता। मगर बाजार में घोषित-अघोषित व्यवस्था के तहत उन्हीं फसलों की कीमतें कई बार इतनी ऊंची हो जाती हैं कि वे साधारण लोगों की पहुंच से बाहर हो जाती हैं। सवाल है कि यह बीच की रकम किसके पास चली जाती है? जरूरत इस बात की है कि आम उपभोक्ताओं के साथ-साथ किसानों का हित सुरक्षित रखने के लिए संतुलित उपाय किए जाएं।