मणिपुर में करीब चार महीने पहले जिस हिंसा की शुरुआत हुई थी, वह अब भी जारी है तो इसे किसकी नाकामी के तौर पर देखा जाएगा? सरकार की जिम्मेदारी हालात पर जल्द से जल्द काबू पाने की होनी चाहिए थी, लेकिन फिलहाल वहां दशा यह है कि हिंसा की तस्वीर लगातार बिगड़ती जा रही है। संबंधित महकमे और सुरक्षा बलों की मौजूदगी अराजकता फैलाने वाले समूहों को किस हद तक रोक पा रही है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि हिंसक घटनाएं अब नई और जटिल शक्ल अख्तियार करने लगी हैं।

यों मई में हिंसा की शुरुआत के बाद आदिवासियों ने इंफल घाटी में आने से परहेज करना शुरू कर दिया था, लेकिन किसी वजह से मंगलवार की सुबह तीन लोग इंफल पश्चिम और कांगपोपकी के सीमावर्ती इलाकों में स्थित इरेंग और करम के पास पहाड़ी सड़क का इस्तेमाल करते हुए लेमकांग की ओर बढ़ रहे थे, तभी हथियारबंद आतंकवादियों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी। मारे गए तीनों लोग कुकी-जोमी समुदाय के थे। गौरतलब है कि आठ सितंबर को भी एक हमले में तीन कुकी लोगों की हत्या कर दी गई थी। यानी एक बार फिर हिंसा की फैलती आग में कुकी-जोमी समुदाय के लोगों के खिलाफ हिंसा का नया दौर शुरू हो गया है।

मणिपुर में सेना के उतरने के बाद हालात थोड़े नियंत्रण में देखे गए थे। लेकिन ऐसा लगता है कि थोड़ी शांति शायद तभी दिखती है, जब सेना सक्रिय होती है। ताजा हिंसा के वक्त भी जब गोलियों की आवाज सुन कर सुरक्षा बल और सेना के जवान आसपास के इलाकों से घटनास्थल तक पहुंचे, तब तक आतंकवादी फरार हो चुके थे।

हालांकि वहां सुरक्षा बलों और पुलिस महकमे की ओर से आम नागरिकों को बचाने का प्रयास किए जाने की खबरें आती रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अब भी वहां स्थिति बेहद संवेदनशील है और हिंसा के नए आयाम दिख रहे हैं। मई की शुरुआत में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के सवाल पर शुरू हुई हिंसा अब तक राज्य में प्रभावी हैसियत में माने जाने वाले मैतेई और उनके बरक्स कुकी जनजाति के बीच ही रही है। लेकिन मंगलवार को तीन लोगों की हत्या से संबंधित खबर में चिंता की बात यह है कि इसमें उस इलाके में सक्रिय आतंकवादी समूह भी कुकी समुदाय पर हमला कर रहे हैं।

यों सुरक्षा एजंसियां पहले भी चेतावनी दे चुकी हैं कि यूएनएलएफ, पीएलए, केवाईकेएल और पीआरईपीए जैसे प्रतिबंधित समूहों से जुड़े आतंकवादी भी हिंसा और हमला करने वाली भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं। सवाल है कि इतने लंबे वक्त से जारी हिंसा को जहां कोई भी रास्ता अख्तियार करके रोकना चाहिए था, संवाद के जरिए समाधान का तरीका तलाशना चाहिए था, वहां शांति स्थापित करने के तमाम दावों और कवायदों के बावजूद हालात बिगड़ते क्यों जा रहे हैं?

दो पक्षों के बीच तनाव में जिस तरह आतंकवादी समूहों को भी सक्रिय होते देखा जा रहा है, उससे सरकार की कमजोरी का ही पता चलता है। ऐसे में जो समुदाय कमजोर है, उस पर हमले तेज हो रहे हैं। यह सब तब भी जारी है, जब राज्य में शांति स्थापित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक की ओर से दखल दिया गया, शांति और निगरानी समिति बनाई गई।

इसके अलावा, वहां पुलिस के समांतर सुरक्षा बल और सेना के जवान भी तैनात हैं। मणिपुर की हिंसा में अब आतंकवादियों का शामिल होना समस्या को ज्यादा जटिल शक्ल दे रहा है। इन बिगड़ते हालात की जिम्मेदारी आखिर किसकी है?