बीते कुछ सालों में रैगिंग के खिलाफ हर स्तर पर जागरूकता बढ़ी है। लेकिन आज भी अक्सर ऐसी खबरें आ जाती हैं, जिससे लगता है कि रैगिंग एक सामाजिक समस्या के रूप में शिक्षण संस्थानों में मौजूद है। हालत यह है कि व्यवस्थित और चाक-चौबंद होने का दावा करने वाले स्कूल भी अपने यहां ऐसी घटनाओं को पूरी तरह नहीं रोक पा रहे हैं। नोएडा के दिल्ली पब्लिक स्कूल में सोमवार को बारहवीं के कुछ छात्रों ने ग्यारहवीं के विद्यार्थी यश प्रताप को बेरहमी से मारा-पीटा, क्योंकि उसने रैगिंग के नाम पर अपने कपड़े उतारने से इनकार कर दिया था। अब इस मामले में एफआइआर दर्ज होने के बाद कार्रवाई की बात कही जा रही है, लेकिन आरोप यह भी है कि वरिष्ठ छात्रों ने यश के साथ कुछ दिन पहले भी रैगिंग की कोशिश की थी और इसकी शिकायत प्रबंधन के पास की गई थी। लेकिन तब आरोपी छात्रों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जाहिर है, इससे उन लोगों का हौसला बढ़ा और उन्होंने यश को बुरी तरह पीटा। सवाल है कि स्कूल प्रबंधन ने पहली शिकायत पर कोई ठोस कार्रवाई करना जरूरी क्यों नहीं समझा! रैगिंग को काफी पहले ही एक गंभीर समस्या के रूप में चिह्नित किया जा चुका है। लेकिन स्कूल प्रबंधन ने काउंसिलिंग से लेकर प्रशासन के स्तर पर ऐसे क्या इंतजाम किए हैं कि कुछ छात्र आज भी कनिष्ठ विद्यार्थियों की रैगिंग करने से नहीं हिचक रहे हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को सख्त निर्देश है कि अगर रैगिंग की कोई घटना हुई तो इसके लिए उन्हें भी जवाबदेह माना जाएगा; हर उच्च शिक्षण संस्थान में रैगिंग के खिलाफ एक समिति बनाने से लेकर संबंधित नियमों का पालन न करने पर संस्थान की मान्यता रद्द कर दी जाएगी। मगर ऐसा लगता है कि न संस्थानों में पहले से पढ़ रहे कुछ विद्यार्थियों को इससे कोई फर्क पड़ता है, न संबंधित संस्थान अपने परिसर में रैगिंग पर रोक को लेकर गंभीर हैं, बल्कि अगर कभी इस तरह की घटना सामने आती भी है तो पहले उसे भीतर ही रफा-दफा करने की कोशिश की जाती है। पिछले एक-डेढ़ दशक के दौरान उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए कानूनी और शासकीय पहल के बेहतर नतीजे भी सामने आए। लेकिन सच यह है कि संस्थानों की लापरवाही के चलते रैगिंग के बहाने किसी नवागंतुक विद्यार्थी को अपमानित और तंग करने, मार-पीट की घटनाएं अब भी सामने आती रहती हैं। सवाल है कि परिचय के परदे में वरिष्ठता जताने का यह कौन-सा सामंती तरीका है कि इसके शिकार विद्यार्थी कभी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं या फिर अपमान से उपजे दवाब और तनाव के बाद आत्महत्या भी कर लेते हैं। इससे ज्यादा अफसोसनाक और क्या होगा कि कोई युवा अपने भविष्य के सपने लेकर किसी संस्थान में पढ़ाई करने जाता है, लेकिन वह जगह कई बार उसके लिए एक बड़ी त्रासदी साबित होती है। किसी संस्थान या कॉलेज में पहले से पढ़ रहे विद्यार्थियों के भीतर वह श्रेष्ठता-भाव के छद्म से निर्मित विकृत मानसिकता कहां से आती है कि वह नवागंतुकों के साथ ऐसा बर्ताव कर बैठता है। जाहिर है, इसकी जड़ें मानसिकता में भी पैठी हैं। इसलिए कानूनी सख्ती के साथ-साथ समाज से लेकर शिक्षण संस्थानों तक के परिवेश को संवेदनशील और सजग बनाने की जरूरत है।