वेनेजुएला में विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को वर्ष 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार देने का एलान न केवल शांति के पक्ष में उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, बल्कि महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से भी इसे एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है। शांति का अर्थ व्यापक है, इसमें संघर्ष और हिंसा से दूर रहना, समाज में सद्भाव एवं समानता, मानवाधिकारों की रक्षा, समृद्धि और न्याय जैसे तत्त्व भी शामिल होते हैं। मचाडो को अपने देश में लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और विपक्ष को एकजुट कर संपूर्ण व्यवस्था में सुधार लाने के वास्ते शांतिपूर्ण प्रयासों के लिए यह पुरस्कार मिला है।

उन्हें एक ऐसी शख्सियत के तौर पर देखा जा रहा है, जिन्होंने तमाम मुश्किलों और बाधाओं को अपने साहस एवं जज्बे से मात देकर शांति की राह पर आगे बढ़ने की सीख दी है। उन्हें एक ऐसी महिला के रूप में भी मान्यता मिली है, जो व्यवस्थागत अंधकार के बीच लोकतंत्र की लौ जलाए रखने में सक्षम हैं। इससे पहले उन्हें यूरोपीय संघ के सर्वोच्च मानवाधिकार पुरस्कार ‘सखारोव’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।

स्वतंत्र चुनाव और प्रतिनिधि सरकार की मांग को समान रूप से उठाने पर मिला नोबेल

मारिया मचाडो वेनेजुएला में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थीं, लेकिन चुनाव प्रक्रिया के दौरान उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे पहले उन्होंने गहन तौर पर विभाजित रहे विपक्ष को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने एक ऐसा विपक्ष खड़ा किया, जिसने स्वतंत्र चुनाव और प्रतिनिधि सरकार की मांग को समान रूप से उठाया। बाद में उन पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। उनकी जान को गंभीर खतरा था, इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वे शांतिपूर्ण तरीके से लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ती रहीं।

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यह सच है कि किसी भी पुरस्कार का असली हकदार वही होता है, जिनके अभूतपूर्व कार्यों और उनके प्रभाव की तस्वीर धरातल पर साफ नजर आती हो। सिर्फ दावों का डंका बजाकर किसी समाज, राष्ट्र या दुनिया में धारणा का एक अस्थिर ढांचा खड़ा करने की कोशिश करने वालों की सच्चाई छिप नहीं पाती है। मचाडो को मिला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार वास्तव में महिलाओं को हर परिस्थिति में संघर्ष करते रहने की प्रेरणा भी देता है।