रविवार को हुई नीति आयोग की पहली बैठक के बाद कहा जा रहा है कि योजना-निर्माण और नीति-निर्धारण की प्रक्रिया विकेंद्रीकरण की राह पर चल पड़ी है। विकेंद्रीकरण का दावा करना या आयोग को इसका श्रेय देना अभी जल्दबाजी होगी। हां, इतना जरूर हुआ है कि पहली बार मुख्यमंत्रियों को योजनाओं का खाका तैयार करने और उनके लिए आबंटन तय करने वाले निकाय में जगह मिली है।
विकेंद्रीकरण का तकाजा है कि यह प्रक्रिया राज्यों के नेतृत्व की भागीदारी तक सीमित न रहे बल्कि उससे आगे जिले और प्रखंड स्तर तक ले जाई जाए। बैठक में शामिल मुख्यमंत्रियों ने जहां केंद्र-प्रायोजित योजनाओं में राज्यों के लिए आबंटन बढ़ाने और केंद्रीय राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी में इजाफा करने की मांग उठाई, वहीं प्रधानमंत्री ने सहकारपूर्ण प्रतिस्पर्धा के लिए राज्यों का आह्वान किया। साफ है कि प्रधानमंत्री की प्राथमिकता जहां विकास दर बढ़ाने पर है वहीं राज्यों के लिए वे मसले अहम हैं जिनसे वे जूझ रहे हैं।
यह किसी से छिपा नहीं है कि खर्चों के मुकाबले राज्यों के आय के स्रोत कम हैं और वे अक्सर केंद्र की कृपा के मोहताज बने रहते हैं। इसलिए केंद्रीय राजस्व में हिस्सेदारी बढ़ाने और केंद्रीय योजनाओं में राज्यों के लिए आबंटन में इजाफा करने की मांग सभी मुख्यमंत्रियों ने एक स्वर से की। पर कई मामलों में विभिन्न राज्यों का रुख अलग-अलग है। मसलन, हिमाचल प्रदेश चाहता है कि पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष सहायता की नीति अपनाई जाए ताकि वे अपने औद्योगिक और ढांचागत विकास को आगे बढ़ा सकें। वहीं पंजाब को भय है कि पड़ोसी राज्य पर ऐसी मेहरबानी से उसके यहां पहले से स्थापित उद्योगों में पलायन का रुझान पनप सकता है।
बिहार विशेष दर्जा चाहता है तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने केंद्र-प्रायोजित योजनाओं का नब्बे फीसद आबंटन राज्यों को हस्तांतरित करने की वकालत की। जहां तक केंद्रीय राजस्व में हिस्सेदारी का सवाल है, यूपीए सरकार के समय इसमें थोड़ी बढ़ोतरी हुई थी और अब वह बत्तीस फीसद है। बारहवें वित्त आयोग ने इसमें दस फीसद इजाफे का प्रस्ताव रखा है। मगर एक पेचीदा मसला यह भी है कि केंद्रीय राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी किस आधार पर तय होगी। गौरतलब है कि राज्य की जनसंख्या, भौगोलिक आकार, वित्तीय अनुशासन और आय के स्रोत आदि मानकों पर हिस्सेदारी का हिसाब बिठाया जाता रहा है। कुछ राज्य जनसंख्या और पिछड़ेपन को राजस्व-हिस्सेदारी के मानक के तौर पर ज्यादा अहमियत देने की वकालत करते हैं, तो कुछ चाहते हैं कि वित्तीय अनुशासन को पुरस्कृत किया जाए।
हिस्सेदारी के निर्धारण का एक ढांचा बना हुआ है और विभिन्न मानकों के अलग-अलग अंक तय हैं। मगर बारहवें वित्त आयोग की सिफारिश के मुताबिक जैसे ही केंद्रीय राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने का फैसला होगा, मानकों को लेकर विभिन्न राज्यों के अपने-अपने आग्रह फिर से विवाद का विषय बन सकते हैं। इस अवसर पर केंद्रीय योजनाओं की संख्या कम करने के प्रस्ताव पर आमतौर पर सहमति दिखाई दी। इसकी पहल यूपीए सरकार के समय ही हो गई थी, जब केंद्रीय योजनाओं की संख्या एक सौ सैंतालीस से घटा कर छियासठ कर दी गई। अब केंद्र इन्हें समायोजित कर इनकी संख्या दस तक सीमित करना चाहता है, ताकि उन पर नजर रखना आसान हो।
प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के जो तीन उप-समूह बनाए हैं उनमें से एक का काम केंद्रीय योजनाओं के फिर से समायोजन के बारे में सुझाव देना है। प्रधानमंत्री ने नीति आयोग के तहत हर राज्य में दो उप-समितियां बनाने को कहा है जो गरीबी उन्मूलन और स्वच्छ भारत अभियान से संबंधित होंगी। नीति आयोग को राष्ट्रीय विकास परिषद जैसा मंच बना देने के अलावा फिलहाल और कोई खास बात नहीं दिखती जिसे योजना आयोग से अलग कहा जा सके।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta