नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ पूरी तरह लचर रेल प्रबंधन का नतीजा है। बताया जा रहा है कि दिल्ली से प्रयागराज के लिए चलाई गई विशेष गाड़ी की उद्घोषणा के बाद भगदड़ मच गई। स्टेशन पर रोज की तुलना में कई गुना भीड़ जमा थी। उद्घोषणा सुनते ही लोग एक से दूसरे प्लेटफार्म पर पहुंचने के लिए धक्कामुक्की करने लगे। इस तरह अठारह लोग कुचल कर मारे गए और कई घायल हो गए। विचित्र है कि रेल प्रशासन ने शुरू में इस घटना को ढकने-छिपाने का प्रयास किया।

जिस अस्पताल में घायलों को भर्ती कराया गया, वहां भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात कर दिए गए। पीड़ितों के बारे में सूचना सार्वजनिक करने पर रोक लगाने के प्रयास किए गए। स्वाभाविक ही, इस घटना को लेकर सरकार पर अंगुलियां उठनी शुरू हो गई हैं। ठीक ऐसी ही घटना पिछले कुंभ के समय प्रयागराज में हुई थी। तब भी एक गाड़ी के दूसरे प्लेटफार्म पर पहुंचने की सूचना दी गई थी और इसी तरह भगदड़ मच गई थी, जिसमें छत्तीस लोगों की मौत हो गई थी। इसलिए नई दिल्ली की भगदड़ कोई नया अनुभव नहीं है। रेलवे चाहे जो भी दलीलें दे, पर इस घटना में उसकी लापरवाही अक्षम्य है।

सरकार कर रही थी लोगों को आने की अपील

प्रयागराज महाकुंभ की तैयारियां कई महीने पहले से चल रही थीं। सरकार बढ़-चढ़ कर इसमें लोगों से पहुंचने की अपील कर रही थी। दावा किया गया था कि वहां चालीस से पैंतालीस करोड़ लोग पहुंचेंगे और करीब सौ करोड़ लोगों को ध्यान में रखते हुए इंतजाम किए गए हैं। तेरह हजार विशेष रेलगाड़ियां चलाने का दावा किया गया। इसके लिए रेलवे को अतिरिक्त भारी राशि आबंटित की गई थी। यानी रेलवे इस बात से अनजान नहीं था कि महाकुंभ के दौरान उस पर भारी दबाव रहेगा। फिर भी उसने भीड़ पर काबू पाने के लिए कोई व्यावहारिक व्यवस्था क्यों नहीं की, यह समझ से परे है।

अब राजनैतिक पार्टियों को सूचनाधिकार कानून में लाने की तैयारी

ऐसा नहीं कि अतिरिक्त भीड़ इससे पहले कभी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जुटी ही नहीं। त्योहारों के मौसम में हर वर्ष रेलवे को ऐसी भीड़ से निपटना पड़ता है। तब भी विशेष गाड़ियां चलानी पड़ती हैं। महाकुंभ के दौरान कुछ अधिक लोग जरूर जमा हो गए होंगे, मगर इससे रेलवे को अपने कुप्रबंधन पर पर्दा डालने का मौका नहीं मिल जाता। ऐसी अव्यवस्था नई दिल्ली के अलावा देश के कई दूसरे स्टेशनों पर भी देखी गई। सवाल है कि इस अव्यवस्था और इसके नतीजों की जिम्मेदारी कौन लेगा।

पहले से होती व्यवस्था तो नहीं मचती अफरा-तफरी

रेलवे की दलील है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बढ़ती भीड़ को देखते हुए उसने विशेष गाड़ियां चलाने का फैसला किया था। यह भी विचित्र बात है। कोई भी गाड़ी इस तरह बिना पूर्व सूचना और तय कार्यक्रम के नहीं चलाई जाती। फिर उस गाड़ी के बारे में बिना यह जाने-समझे उद्घोषणा कर दी गई कि लोगों में इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। जब वहां के प्लेटफार्म प्रबंधन करने वाले देख रहे थे कि भीड़ काफी जमा है, तो उन्हें इस बात की आशंका क्यों नहीं हुई कि भगदड़ मच सकती है।

लोगों की कमाई पर बैंक से ही खतरा, सख्ती के बावजूद 122 करोड़ का गबन

पहले वे लोगों के उस गाड़ी तक पहुंचने की व्यवस्था करते, फिर उद्घोषणा करते, तो शायद ऐसी अफरा-तफरी न मचती। अव्वल तो उतने ही लोगों को भीतर जाने दिया जाता, जितने की गाड़ियों में क्षमता हो सकती है। ये तो सामान्य बुद्धि से भी समझ आने की बातें थीं, मगर रेलवे प्रबंधन ने शायद लोगों की जान की कोई कीमत ही नहीं समझी।