इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत और भूटान के बीच सदियों से मधुर संबंध रहे हैं और अच्छे पड़ोसी होने के नाते दोनों देशों में कई स्तर पर आपसी सहयोग पर आधारित तालमेल लंबे समय से कायम रहा है। लेकिन नई परिस्थितियों में दुनिया भर में बदलते समीकरण के दौर में ऐसे रिश्तों को मजबूती देने के लिए नए कार्यक्रमों पर जोर देना, उसमें स्पष्टता लाना समय की जरूरत होती है।

इस लिहाज से देखें तो मंगलवार को नई दिल्ली में भूटान के राजा और भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात के दौरान आपसी संबंधों को दृढ़ करने को लेकर जिस तरह नीतिगत स्तर पर बातचीत आगे बढ़ी, वह एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है। खासतौर पर दोनों देशों के बीच सुरक्षा के मुद्दे पर तालमेल बढ़ाने पर जो सहमति बनी और ‘पहले से ही घनिष्ठ संबंधों’ को विस्तार देने के मकसद से पांच सूत्रों पर आधारित रूपरेखा तैयार की गई, वह निश्चित रूप से भारत और भूटान के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। यों भी भारत में भूटान को लेकर अतीत में कभी कोई द्वंद्व नहीं रहा है। यह भारत का हमेशा ही करीबी सहयोगी रहा है। बल्कि पिछले कुछ सालों में द्विपक्षीय संबंधों को लेकर दोनों देशों के बीच काफी प्रगति हुई है।

दरअसल, भारत में मौजूदा सरकार ने ‘पड़ोसी प्रथम की नीति’ की तरजीह दिया है। इसी के तहत भारत एक परस्पर सहयोगी पड़ोसी और नजदीकी मित्र के रूप में भूटान को महत्त्व देता रहा है। औपचारिक सद्भावनाओं और कार्यक्रमों के जरिए संबंधों में मजबूती को पुष्टि मिलती है। मगर भारत ने अपनी ओर से नीतिगत स्तर पर परस्पर सहयोग आधारित नीति ही अपनाई है, जिसमें एक दूसरे की गरिमा को कायम रखना एक अहम पक्ष होता है।

भूटान नरेश के ताजा दौरे में भी भारत के साथ विविध क्षेत्रों में सहयोग को और व्यापक बनाने के मकसद से जो खाका तैयार किया गया, उसमें मुख्य रूप से पांच सूत्रों पर जोर दिया गया। इसमें अर्थव्यवस्था और विकास में साझेदारी के साथ-साथ भारत भूटान में व्यापार, संपर्क और निवेश के तहत बुनियादी ढांचा, रेल, हवाई संपर्क और अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित करने में सहयोग करेगा। इसके अलावा, दीर्घकालिक और सतत व्यापार सुविधा के उपाय और ऊर्जा सहित अभिनव क्षेत्रों में सहयोग के रास्ते तलाशे जाएंगे।

जाहिर है, भूटान नरेश की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच पहले से कायम मित्रवत संबंधों को ताजगी देने और उसमें मजबूती लाने की कवायद है। लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत और भूटान, दोनों की सीमा से सटा देश चीन आज जिस तरह की बिसात रच रहा है, अगर समय रहते उसे नहीं समझा गया तो उससे नई जटिलताएं खड़ी होंगी।

मसलन, हाल में चीन ने भारत के सीमाई इलाकों में जिस तरह की हरकतें की हैं, उसे वह औपचारिक शक्ल देने की फिराक में है और दूसरे देशों को भी अपने प्रभाव में लेना चाहता है। शायद इसी संजाल की वजह से भूटान के प्रधानमंत्री ने हाल ही में अपने एक साक्षात्कार में डोकलाम को लेकर एक उलझा हुआ बयान दिया था। उन्होंने भूटान के सीमावर्ती इलाकों में चीन की ओर से गांव बसाने के मसले पर भी कहा कि कोई अतिक्रमण नहीं हुआ।

भूटान का यह रुख अगर अंतिम नहीं भी है तो इस तरह की अस्पष्टता से निश्चित रूप से एक भ्रम की स्थिति बनेगी। बेहतर हो कि भूटान चीन के दबाव में आए बिना भारत के साथ आपसी सहयोग और सम्मान पर आधारित रिश्ते की अहमियत को समझे। अतीत से लेकर अब तक घनिष्ठ संबंधों की बुनियाद पर एक मजबूत भविष्य का निर्माण दोनों देशों के लिए वक्त का तकाजा है।