महामारी नियमों में कोरोनोचित व्यवहार न करना दंडनीय अपराध है। उन नियमों में सार्वजनिक जगहों पर उचित दूरी बनाए रखना, नाक-मुंह ढंकना, कहीं भी न थूक देना आदि शामिल हैं। इन नियमों का पालन न करने वालों पर नजर रखना पुसिल की जिम्मेदारी है। मगर उसकी सीमा है, इसलिए कोरोना संबंधी सभी नियमों का पालन कराना संभव नहीं हो पाता। यही वजह है कि मुख्य रूप से उसने मास्क न पहनने वालों के खिलाफ कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित किया। मास्क न पहनने पर दो हजार रुपए का जुर्माना है। यह पुलिस के लिए सबसे आसान भी है।

इसलिए वह कहीं भी बाजार वगैरह में चलते-फिरते लोगों को बिना मास्क के देखती है, तो उसका चालान काट देती है। इस तरह हर राज्य कोरोना काल में अब तक हजारों करोड़ रुपए कमा चुका है। दिल्ली में तो सरकार ने मास्क संबंधी नियम को इस कदर कड़ा बना रखा है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी बंद कार में अकेले भी बैठा है, और मास्क नहीं पहना है, तो उसका चालान होगा। ऐसे भी बहुत सारे लोग दंड के भागी हो चुके हैं। अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने अकेले कार चला रहे व्यक्ति के मास्क न पहने होने पर चालान काटने के आदेश को बेतुका करार दिया है।

एक ऐसे ही व्यक्ति ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी, क्योंकि वह अपनी बंद कार में बैठ कर काफी पी रहा था और पुलिस ने उस पर दो हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया। इस पर अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि यह आदेश अभी तक वापस क्यों नहीं लिया गया। हालांकि इस आदेश को पहले भी चुनौती दी गई थी, मगर तब अदालत ने कहा था कि आप बेशक कार में अकेले बैठे हों, पर घर से बाहर बिना मास्क के निकलना जुर्म माना जाएगा। अब उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से इस आदेश के वापस लिए जाने की सूरत बनी है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना महामारी से पार पाने के लिए लोगों की सतर्कता बहुत जरूरी है। मगर लोगों में जब तक दंड का भय न हो, वे अपने कर्तव्यों का निर्वाह भी नहीं करते। यही वजह है कि हमारे देश में ऐसे-ऐसे विषयों को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है और उन्हें लेकर दंड के प्रावधान किए गए हैं, जिनका पालन लोगों को सामान्य नागरिक बोध के आधार पर करना चाहिए। मसलन, सार्वजनिक जगहों पर या जहां-तहां थूकने को लेकर भी दंड का प्रावधान करना पड़ा।

नागरिकों के इसी लापरवाह रवैए को देखते हुए दिल्ली सरकार ने कड़ा आदेश दिया होगा। मगर जिन लोगों पर कानूनों का पालन कराने का दायित्व होता है, उनसे भी विवेक की अपेक्षा की जाती है, न कि कानून की लकीर पकड़ कर किसी पर भी नाहक नकेल कसने की। मगर हमारे देश की पुलिस का हाल यह है कि दंडात्मक कानून उनके लिए इंस्पेक्टर राज चलाने का साधन बन जाते हैं। मास्क पहनना जरूरी है, मगर कोई व्यक्ति अगर अपनी गाड़ी के कांच ऊपर करके अकेले या अपने परिवार के साथ चल रहा है, तो पुलिस को यह अपने विवेक से तय करना चाहिए कि वह कोरोना के विषाणु कैसे फैला या खुद संक्रमित हो सकता है। मगर पुलिस को चूंकि उससे जुर्माना वसूलना आसान है, इसलिए विवेक का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं समझती। ऐसे नियमों को सरकारों को खुद अपने विवेक का इस्तेमाल कर रद्द कर देना चाहिए।