लंबी चुप्पी के बाद आखिर प्रधानमंत्री गोरक्षकों पर हमलावर हुए। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों पर उन्हें गुस्सा आता है, जो रात को गैरकानूनी कामों में लिप्त रहते हैं और उसे छिपाने के लिए दिन में गोसेवा का ढोंग करते हैं। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए उन्होंने राज्य सरकारों से कड़ा रुख अपनाने की अपील की। मगर प्रधानमंत्री के इस बयान का कितना असर होगा, कहना मुश्किल है। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार आई है, गोरक्षा के नाम पर देश भर में दलितों और मुसलमानों पर हमले तेज हुए हैं। इसकी शुरुआत हुई जब महाराष्ट्र में गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा। फिर दूसरे राज्यों में भी इसे लागू करने पर जोर दिया गया। गोमांस की बिक्री पर रोक संबंधी कानूनों की व्याख्या की जाने लगी। फिर जगह-जगह गोरक्षक दल बन गए और उन्होंने खुद इस मसले को अपने हाथ में ले लिया। जहां भी गायों को ले जाते वाहन दिखते, उन्हें रोक कर मारपीट की जाने लगी।

इसमें ज्यादातर हमलों के शिकार मुसलमान हुए। अगर कोई दलित मरे जानवर की खाल उतारने की कोशिश करता, तो उसे पीटा जाता। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात में ऐसी घटनाएं अधिक देखी गईं। उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक को गाय का मांस रखने के जुर्म में भीड़ ने उसे पीट-पीट कर मार डाला। गुजरात में कुछ दलितों को इसलिए बेरहमी से पीटा गया कि वे एक मरी गाय का चमड़ा उतारने ले जा रहे थे। इन घटनाओं पर देश भर में निंदा हुई। गुजरात के दलित आंदोलन पर उतर आए और वहां भाजपा सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं। इनके अलावा आए दिन देश के किसी न किसी हिस्से में गोरक्षक दलों का कहर दलितों और मुसलमानों पर टूटता रहा है।

सवाल है कि पिछले दो सालों से यह सब हो रहा है और प्रधानमंत्री ने अब तक इस पर चुप्पी क्यों साध रखी थी। यह कोई साधारण मसला नहीं है, जिस पर उनका बोलना जरूरी नहीं समझा जाता। वे हर छोटे-बड़े मसलों पर बोलते रहे हैं। उनके बोलने का मतलब है सभी भाजपा कार्यकर्ताओं और सरकारों को संदेश जाना। क्या उन्हें इस मुद्दे पर बोलना इसलिए जरूरी लगा कि उनके राज्य गुजरात में गोरक्षकों के अत्याचार के खिलाफ बड़ा हंगामा खड़ा हो गया। या फिर इसलिए कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और गुजरात के दलितों की आवाज वहां भी पहुंच रही है। क्या प्रधानमंत्री को इतने समय बाद गोरक्षकों की असलियत पता चली। अगर उन्होंने मोहम्मद अखलाक वाली घटना के समय ही कड़े शब्दों में गोरक्षकों की निंदा कर दी होती तो आज यह नौबत न आती।

धर्मांतरण के मसले पर भी उन्होंने ऐसी ही चुप्पी साधे रखी, जिसका नतीजा यह हुआ कि देश भर में हिंदुत्ववादी संगठन दलितों और मुसलमानों को प्रताड़ित करते रहे। इन घटनाओं से न सिर्फ भाजपा को, बल्कि केंद्र सरकार को भी किरकिरी झेलनी पड़ती है। अगर हिंदुत्व या फिर गोरक्षा के नाम पर विवाद खड़ा करने वाले सचमुच शरारती तत्त्व हैं, तो उनकी पहचान कर दंडित करना इतना मुश्किल क्यों होना चाहिए। अगर अब तक ऐसे लोगों के खिलाफ कड़े कदम उठाए गए होते तो प्रधानमंत्री को सफाई के लिए इस तरह सामने न आना पड़ता। अब भी समय है, अगर इन प्रवृत्तियों पर नकेल कसने में संजीदगी दिखाई जाए तो प्रधानमंत्री के विकास संबंधी मुद्दों की राह के कई रोड़े अपने आप दूर हो सकते हैं।