दशकों से फौजी हुकूमत के अधीन रहे म्यांमा में यह ऐतिहासिक घड़ी है, क्योंकि वहां लोकतंत्र की बहाली हो रही है। पिछले पच्चीस साल में वहां यह पहला आम चुनाव है जिसे दुनिया ने निष्पक्ष माना। इन चुनावों में अस्सी फीसद मतदाताओं की उत्साहपूर्ण भागीदारी सैन्य शासन से मुक्ति की चाहत और लोकतंत्र बहाली से जुड़ी उनकी उम्मीदों की ओर ही इशारा करती है। लोकतंत्र के लिए संघर्ष का प्रतीक बन चुकी आंग सान सू की पार्टी एनएलडी यानी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को एक बार फिर मतदाताओं का असाधारण समर्थन मिला है। फिलहाल सारे आंकड़े नहीं आ पाए हैं, पर मोटामोटी तस्वीर यह है कि एनएलडी को छह सौ चौंसठ सीटों वाली संसद में सत्तर फीसद से ज्यादा सीटें मिलने जा रही हैं।
क्षेत्रीय विधायिका में भी उसे ऐसी ही शानदार कामयाबी मिली है। यों छोटे-छोटे जातीय और क्षेत्रीय दलों को मिला कर कुल नब्बे पार्टियां मैदान में थीं, पर मुख्य मुकाबला एनएलडी और सत्तारूढ़ यूनाइटेड सॉलिडेरिटी डेवलपमेंट पार्टी के बीच ही था। इससे पहले आम चुनाव, जिन्हें पूरी तरह स्वतंत्र चुनाव माना गया, 1990 में हुए थे। तब भी एनएलडी की भारी विजय हुई थी। लेकिन सैन्य शासन ने उन चुनावों को खारिज कर दिया। यही नहीं, सू की को उनके घर में नजरबंद कर दिया गया। उनके हजारों समर्थक जेलों में डाल दिए गए, जिन्हें तरह-तरह से यातनाएं दी जाती रहीं। आखिरकार जुंटा यानी म्यांमा का सैन्य शासन राजनीतिक सुधारों के लिए राजी हुआ तो इसलिए कि लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते वह दुनिया से अलग-थलग पड़ गया।
इस स्थिति से उबरने के लिए 2011 में जुंटा ने चोला बदला और सरकार की कमान गैर-फौजी पृष्ठभूमि के थेन सेन को थमा दी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चुनाव कराने का भरोसा दिलाया, पर संविधान में दो ऐसे खास प्रावधान किए कि चुनाव होने पर भी फौज का दखल और किसी हद तक नियंत्रण बना रहे। एक यह कि संसद की पच्चीस फीसद सीटें फौज के द्वारा मनोनीत लोगों को दी जाएंगी। दूसरे, आंग सान सू की राष्ट्रपति नहीं हो सकेंगी, इस बिना पर कि उन्होंने एक विदेशी व्यक्ति से विवाह किया था। यों सेना प्रमुख ने पिछले दिनों कहा कि वे जन-आकांक्षा का सम्मान करेंगे और 1990 की पुनरावृत्ति नहीं होगी। इससे यह संभावना जताई जा रही है कि नए संविधान के बेतुके प्रावधान शायद वापस ले लिये जाएंगे और आंग सान सू की के राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो जाएगा।
जो हो, यह म्यांमा में एक नए युग का आगाज है। इसी के साथ एनएलडी के सामने कई चुनौतियां भी होंगी। कई वर्षों से म्यांमा तरह-तरह के जातीय और सांप्रदायिक गुटों के टकरावों और हिंसा का शिकार होता रहा है। सामाजिक शांति कायम करना और तमाम समुदायों के बीच सौहार्द तथा राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत करना म्यांमा के राजनीतिक नेतृत्व की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। विकास के नाम पर लंबे समय से वहां जो काम सबसे अधिक हुआ है, वह है प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन। इसका सबसे ज्यादा फायदा चीन ने उठाया है, पर म्यांमा के आम लोगों को क्या हासिल हुआ? एनएलडी को मिले जनादेश की सार्थकता इसी में होगी कि देश में लोकतांत्रिक संस्थाएं खड़ी और सुदृढ़ की जाएं, लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत की जाए; इसके अलावा विकास की प्राथमिकताएं भी नए सिरे से तय हों।