मध्यप्रदेश सरकार ने अब हिंदी में भी इंजीनियरिंग की परीक्षा दे सकने का रास्ता साफ कर दिया है। इससे निस्संदेह ऐसे हजारों विद्यार्थियों को सहूलियत होगी, जिन्होंने स्कूली शिक्षा हिंदी माध्यम से पूरी की है। यह मांग बहुत समय से होती रही है कि उच्च शिक्षा के स्तर पर भी विज्ञान और तकनीकी विषयों की पढ़ाई हिंदी में कराने की व्यवस्था हो। मगर विज्ञान की तमाम तकनीकी शब्दावली और महत्त्वपूर्ण पुस्तकें अंग्रेजी में ही उपलब्ध होने की अड़चनों को देखते हुए ऐसा फैसला करना मुश्किल बना हुआ था।
इसलिए मध्यप्रदेश सरकार ने पहले इंजीनियरिंग की पाठ्यपुस्तकें हिंदी में तैयार कराने का फैसला किया। इस दिशा में संतोषजनक प्रगति होने के बाद परीक्षा भी हिंदी में दे सकने की व्यवस्था की है। अगले सत्र से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी। गौरतलब है कि स्कूली शिक्षा का माध्यम मुख्य रूप से विद्यार्थी की मातृभाषा है। इसलिए बहुत सारे विद्यार्थी सभी विषय प्राय: अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, चाहे वह गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र जैसे तकनीकी शब्दावली वाले विषय ही क्यों न हों। मगर अड़चन तब आती है जब वे उच्च शिक्षा के लिए किसी तकनीकी संस्थान में प्रवेश लेते हैं।
वहां पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से कराई जाती है। इस तरह बहुत सारे मेधावी विद्यार्थी, जो अंग्रेजी में लिख-पढ़ नहीं सकते, इंजीनियरिंग, प्रबंधन, चिकित्सा विज्ञान जैसे विषयों की पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। समाज को भी, अंग्रेजी की बाधा के कारण, उनके मेधावी होने का लाभ नहीं मिल पाता है। मध्यप्रदेश सरकार ने इस बाधा को दूर करएक सराहनीय कदम उठाया है।
हालांकि इतने भर से अंग्रेजी भाषा में खुद को सहज न महसूस करने वाले विद्यार्थियों की मुश्किलें दूर नहीं हो जातीं। तकनीकी विषयों की पढ़ाई के बाद युवाओं को आमतौर पर जिस परिवेश में काम करना पड़ता है, वह मुख्य रूप से अंग्रेजी का ही है। निजी कंपनियां प्राय: ऐसे विद्यार्थियों को नौकरी देने से हिचकती हैं, जो फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल पाते। विदेशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में हिंदी माध्यम से शिक्षा पाए विद्यार्थी कहां जगह बना पाएंगे, कहना मुश्किल है। इसलिए तकनीकी विषयों की पढ़ाई-लिखाई का माध्यम हिंदी को भी बनाने के साथ-साथ सरकारों को इन क्षेत्रों से जुड़े कामकाज में भी ऐसा ही माहौल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी ज्यादातर विदेशी कंपनियों की तरफ आकर्षित होते हैं, जबकि कृषि, ग्रामीण विकास, स्थानीय संसाधनों के विकास आदि क्षेत्रों में अपार संभावनाएं हैं। वहां स्थानीय भाषा ही व्यवहार में लानी पड़ती है। इसलिए अगर मध्यप्रदेश की तरह सभी राज्य सरकारें तकनीकी विषयों की पढ़ाई प्रांतीय भाषा में कराने की पहल करें तो इंजीनियरिंग, प्रबंधन, चिकित्सा विज्ञान आदि की शिक्षा के बाद विदेश भागने की प्रवृत्ति पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इस मिथ को तोड़ने में भी बहुत हद तक मदद मिलेगी कि प्रतिभाएं सिर्फ अंग्रेजी माध्यम से तैयार होती हैं। तकनीकी विषयों की शब्दावली को सहज और ग्राह्य बनाने की दिशा में भी काफी प्रयास करने की जरूरत है।