कतर में मौत की सजा पाए भारतीय मूल के आठ पूर्व नौसेना अधिकारियों की रिहाई निस्संदेह भारत की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है। करीब डेढ़ वर्ष पहले इन अधिकारियों को इजराइल के लिए पनडुब्बी तकनीक की जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इसकी सूचना न तो भारतीय दूतावास, और न उनके परिजनों को दी गई थी। दूसरे स्रोतों से जब उनके परिजनों को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने भारत सरकार से गुहार लगाई।
मामला प्रकाश में आने के बाद भारत सरकार का विदेश मंत्रालय सक्रिय हुआ और इस संबंध में मध्यस्थता और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था, प्रधानमंत्री ने भी वहां के शासक से इस संबंध में बात की थी। इसका असर यह हुआ कि करीब दो महीना पहले कतर में भारत के राजदूत को इन गिरफ्तार भारतीय नागरिकों से मिलने की इजाजत दी गई और फिर उनकी फांसी की सजा को कैद में बदल दिया गया। अब कतर सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया है, मगर अभी तक मामले की ठीक-ठीक जानकारी सार्वजनिक नहीं की है।
गौरतलब है कि ये भारतीय नागरिक नौसेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे और उनमें से कई वरिष्ठ पदों पर रहे थे। अवकाश प्राप्त करने के बाद कतर की एक निजी नौसेना कंपनी के लिए सेवाएं दे रहे थे। सैन्य परियोजनाओं में दुश्मन देशों के लिए जासूसी के मामले कोई नई बात नहीं हैं। इसके लिए सरकारें अपना पुख्ता निगरानी तंत्र रखती हैं। कतर जैसे देशों में ऐसे अपराधों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है, इसलिए जब भारतीय नागरिकों पर जासूसी का आरोप लगा, तो वहां की अदालत ने कड़ी सजा सुनाई थी।
हालांकि यह मामला इसलिए सबको हैरान करने वाला था कि जिन अधिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई, वे भारतीय नौसेना के जिम्मेदार पदों का निर्वाह कर चुके थे और सैन्य परियोजनाओं की जासूसी के अंजाम से अच्छी तरह वाकिफ थे। उनसे ऐसी असावधानी या किसी लोभ में काम करने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
भारत सरकार का विदेश मंत्रालय अभी पूरे मामले की तह में जाने का प्रयास कर रहा है, पर प्रथम दृष्टया यही लगता है कि जरूर कतर सरकार के निगरानी तंत्र से जासूसी प्रकरण में तथ्य जुटाने को लेकर कोई चूक हुई थी। कई बार मुख्य साजिशकर्ता कोई और होता है और शक के आधार पर उसमें दूसरे लोग भी फंस जाते हैं। कतर के साथ भारत के संबंध बहुत मधुर हैं। पिछले हफ्ते ही उसके साथ भारत ने बीस वर्षों के लिए प्राकृतिक गैस आपूर्ति का बड़ा करार किया है। कई लोग पूर्व नौसैनिकों की रिहाई को इससे भी जोड़ कर देख रहे हैं, मगर कोई भी सरकार व्यापार के लिए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से ऐसा समझौता नहीं कर सकती।
सच्चाई तो यही है कि कतर सरकार ने इन पूर्व नौसैनिकों को गिरफ्तार करने और सजा सुनाने में कुछ जल्दबाजी दिखाई। उसने नियमों के मुताबिक भारत को इस मामले से अवगत नहीं कराया, न आरोपी पक्ष को अपनी सफाई का मौका दिया। दूसरे सूत्रों के मिली जानकारी के आधार पर भारत सरकार ने अपने नागरिकों की रिहाई की कोशिश शुरू की थी।
अगर अंतरराष्ट्रीय अदालत में इसे चुनौती दी जाती, तो कतर का पक्ष कमजोर साबित होता। फिर, अगर सचमुच भारतीय नागरिकों की जासूसी में संलिप्तता रही होती और उसके पुख्ता प्रमाण कतर सरकार के पास होते, तो वह उसे छिपाने का प्रयास नहीं करती।