अमूमन हर साल दिवाली के पहले पटाखों की फैक्टरी या दुकानों में आग लगने की घटनाएं सामने आती रही हैं। कई बार यह वाकया बड़े हादसे की शक्ल भी अख्तियार कर लेता है। लेकिन ऐसा लगता है कि न पटाखा कारोबार में लगे लोगों और न सरकार और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों के लिए ये हादसे कोई सबक होते हैं।

दिवाली से चार दिन पहले आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के वकाटिप्पा में और फिर मंगलवार को दिल्ली से सटे फरीदाबाद में पटाखों के चलते लगी भीषण आग ऐसी ही लापरवाही का नतीजा है। वकाटिप्पा में जहां पटाखे की फैक्टरी में विस्फोट होने से सत्रह लोगों की मौत हो गई, वहीं धनतेरस के मौके पर फरीदाबाद के पटाखा बाजार में भीषण आग लगने के चलते करीब दो सौ दुकानें, दर्जनों वाहन जल कर खाक हो गए और पांच लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। जाहिर है, आंध्र प्रदेश में इसके लिए मुख्य रूप से पटाखा बनाने वाली फैक्टरी के प्रबंधक और फरीदाबाद में उस बाजार के इंतजाम से जुड़े लोगों की लापरवाही जिम्मेवार है। लेकिन सवाल है कि लाइसेंस जारी करने और निगरानी रखने वाले संबंधित महकमों के अधिकारी क्या कर रहे थे? हादसों की स्थिति में लापरवाही बरते जाने के लिए निश्चित रूप से फैक्टरी मालिकों को सजा दी जानी चाहिए। लेकिन साथ-साथ उन अधिकारियों को भी कठघरे में खड़ा किए जाने की जरूरत है, जो पटाखा फैक्टरियों और दुकानों के लिए जरूरी सुरक्षा इंतजामों में ढील बरतने की छूट दे देते हैं या फिर अनदेखी करते हैं।

यों पटाखे का कारोबार शादी-विवाह, क्रिकेट मैच, नया साल आदि को ध्यान में रख कर साल भर चलता रहता है। लेकिन दिवाली के मौके पर ज्यादा खपत के मद्देनजर बड़े पैमाने पर पटाखे तैयार किए जाते हैं और इसके लिए महीनों पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। पटाखे बनाने या बेचने वालों को इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री के अति-ज्वलनशील होने की जानकारी होती है। गंधक और रंग-बिरंगी रोशनी निकालने के मकसद से मिलाए जाने वाले रसायन तनिक कोताही से हादसे का सबब बन सकते हैं।

लेकिन आमतौर पर लघु उद्योग के तौर पर चलाए जाने वाले पटाखे के कारोबार में प्रशिक्षित और रसायनों आदि के मिश्रण में कुशल लोगों से काम लेना जरूरी नहीं समझा जाता। फैक्टरियों में मजदूरों के लिए आग से बचाव के इंतजाम अमूमन नहीं होते। ऐसे कारखाने चलाने वाले सिर्फ अपने मुनाफे की फिक्र करते हैं ज्यादा से ज्यादा उत्पादन या बिक्री के लिए तमाम सुरक्षा मानकों को ताक पर रख देते हैं। सवाल है कि जिस काम में जरा-सी चूक बड़ी तबाही की वजह बन सकती है, उसमें उन्हें इस तरह की मनमानी की छूट कैसे मिल जाती है? करीब दो साल पहले तमिलनाडु के शिवकाशी जिले में एक पटाखा फैक्टरी में आग लगने से चौंतीस लोग मारे गए थे।

इस हादसे ने देश भर को विचलित किया था। उसके बाद उम्मीद की गई थी कि पटाखा कारोबार के लिए सख्त नियम-कायदे लागू होंगे। लेकिन यह अभी तक नहीं हो पाया है। लोग खुशी के इजहार के लिए पटाखे छोड़ते हैं। पर इसके उत्पादन से लेकर बिक्री तक की दास्तान कतई खुशनुमा नहीं है, वह आपराधिक लापरवाही से भरी है। इसके चलते कहीं न कहीं खुशी का मौका मातम में बदल जाता है।