पिछले कुछ समय से कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया में कुछ खालिस्तान समर्थकों ने जिस तरह की हरकतें करनी शुरू कर दी हैं, उससे यही लगता है कि भारत में मनमानी करने में मिली हताशा को अब वे दूसरे देशों में अभिव्यक्त कर रहे हैं। मुश्किल यह है कि बाहर के देशों में कुछ वजहों से कानूनी जटिलताओं का फायदा उठा कर अब वे सार्वजनिक रूप से उच्चाधिकारियों के साथ भी दुर्व्यवहार करने की कोशिश करने लगे हैं।

अमेरिका में न्यूयार्क के लांग आइलैंड में रविवार को भारत के राजदूत के साथ खालिस्तान समर्थकों की हरकत उसी का संकेत है। गौरतलब है कि गुरुपर्व के अवसर पर भारत के राजदूत वहां एक गुरुद्वारे में अरदास करने और लोगों से मिलने-जुलने गए थे। मगर उस वक्त गुरुद्वारे में मौजूद खालिस्तान समर्थकों के एक समूह ने उनके साथ धक्कामुक्की की। हालांकि वहां मौजूद सिख समुदाय के अन्य सदस्यों ने उत्पात मचाने की कोशिश करने वाले खालिस्तान समर्थकों को गुरुद्वारे से बाहर निकाल दिया।

मगर चंद खालिस्तान समर्थकों ने जैसी हरकत की, उसकी अनदेखी इसलिए भी नहीं की जानी चाहिए कि अगर वे गुरुद्वारे जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर एक अहम पद पर बैठे व्यक्ति के साथ धक्कामुक्की कर सकते हैं तो किसी अप्रत्याशित वारदात की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यों वहां मौजूद खुद सिख समुदाय के लोगों ने ही यह साबित किया कि अवांछित हरकत करने वाले लोगों को प्रतिनिधि चेहरे के तौर पर नहीं देखा जा सकता।

गिनती के कुछ लोग अगर खालिस्तान समर्थन के नाम पर मनमानी करने की कोशिश कर रहे हैं तो वे कामयाब नहीं होंगे। कुछ उत्पातियों ने जिस वक्त भारतीय राजदूत के साथ धक्कामुक्की की, उससे ठीक पहले गुरुद्वारे के भीतर ही सिख समुदाय के लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया था। वहां भारतीय राजदूत ने यह भी कहा कि भारत का विदेश में बसे भारतीयों और सिख समुदाय के साथ करीबी रिश्ता कभी नहीं टूटेगा।

जाहिर है, खालिस्तान समर्थक गुटों में एक तरह से इस बात से हताशा दिखती है कि अलगाववाद के झांसे में ज्यादातर सिख नहीं आ रहे हैं और उनकी प्राथमिकताओं में शांति ही है। मगर यह भी सच यह है कि अमेरिका और खासतौर पर कनाडा में पिछले कुछ समय से खालिस्तान समर्थक गुटों ने अपने पांव फैलाए हैं और भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उसके प्रति लापरवाही भी नहीं बरती जानी चाहिए।

इसी वर्ष जून में कनाडा में एक खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कर दी गई थी। उसकी हत्या को लेकर कनाडा की ओर से भारत पर निराधार सवाल उठाए गए, मगर सबूत मांगे जाने पर कनाडा के टालमटोल की स्थिति अब भी जारी है। इसके अलावा, हाल ही में एक खबर में किए गए दावे के मुताबिक, गुरपतवंत सिंह पन्नू को अमेरिका में मारने की साजिश रची जा रही थी और वहां की खुफिया संस्था एफबीआइ ने इसका खुलासा किया था।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि अमेरिका ने इस मुद्दे को भारत के सामने उठाया है। सवाल है कि क्या कनाडा या अमेरिका अपनी जमीन पर खालिस्तान समर्थक अलगाववादी गतिविधियों से इतने अनजान हैं कि वे चाहे-अनचाहे उनकी राह आसान करने की कोशिश करते हैं? अगर इस तरह की घटनाओं और उसके पीछे छिपी मंशा की अनदेखी की गई, तो इससे भारतीय संदर्भों में नई जटिलता खड़ी हो सकती है और इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ेगा।