इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि एक ओर कई प्रमुख फसलों की पैदावार में उम्मीद से ज्यादा की बढ़ोतरी के दावे किए जा रहे हैं, देश भर में बड़ी संख्या में लोगों को मुफ्त अनाज मुहैया कराया जा रहा है, वहीं महाराष्ट्र के एक हिस्से से कुपोषण की वजह से गरीब बच्चों की मौत की खबर आती है। राज्य के आदिवासी क्षेत्र मेलघाट में इस वर्ष जून से लेकर अब तक, यानी पिछले छह महीने में पैंसठ शिशुओं की मौत हो गई, लेकिन राज्य सरकार के संबंधित विभागों ने उन परिवारों की सुध तक नहीं ली।
अब बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस मसले पर कड़ी फटकार लगाई है। गौरतलब है कि मेलघाट आदिवासी बहुल इलाका है और यह कई वर्षों से कुपोषण की समस्या से ग्रस्त है। इस मामले में राज्य सरकार की दलीलें और प्रस्तुत किए गए कागजात इतने कमजोर हैं कि कोई इन पर भरोसा नहीं कर सकता। स्वाभाविक ही अदालत भी इससे असंतुष्ट रही और उसे कहना पड़ा कि कागज पर तो सब ठीक दिखता है, लेकिन वास्तविकता कोसों दूर है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब राज्य सरकार कल्याणकारी योजनाएं चला रही है, संभवत: केंद्र सरकार की मुफ्त अनाज की योजना भी वहां चल रही होगी, तो ऐसे में संबंधित आदिवासी बहुल क्षेत्र में कुपोषण कैसे अपने पांव फैला रहा था। अगर इस क्षेत्र में शिशुओं की मौत हो रही थी, तो इसके कारणों को जानने और उन्हें समय पर दूर करने की कवायद क्यों नहीं हुई। इसमें कोई दोराय नहीं कि आदिवासी इलाकों में कुपोषण के साथ चिकित्सा का अभाव एक गंभीर समस्या है।
खासतौर पर मेलाघाट क्षेत्र में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताएं आहार और उपचार के घोर अभाव का सामना कर रही हैं। अगर शिशुओं की माताओं को पोषक आहार के साथ चिकित्सा सहायता देने की पहल की गई होती, तो ज्यादातर शिशुओं को बचाया जा सकता था। मगर यह समझना मुश्किल है कि महानगरों की जरूरतों के लिए संसाधनों में कोई कमी न होना सुनिश्चित करने वाली सरकार गरीब तबकों या आदिवासी परिवारों के बच्चों को पोषणयुक्त भोजन मुहैया करा पाने में कोई रुचि क्यों नहीं लेती
