अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब जल संकट से जूझ रहे लातूर में ‘जलदूत’ यानी पेयजल से भरी ट्रेन भेजने के लिए केंद्र सरकार की चारों तरफ तारीफ हुई थी। इसे मानवीय पहलकदमी के एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में देखा गया। लेकिन अब जिस तरह रेलवे की ओर से लातूर जिले के कलक्टर को उस ‘जलदूत’ का किराया चुकाने के लिए चार करोड़ रुपए का बिल भेजा गया है, वह न सिर्फ चरम संवेदनहीनता है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि आपदा के समय कोई सरकारी महकमा कैसे खुद सहयोग करने के बजाय कारोबारी रवैया अख्तियार कर सकता है। गौरतलब है कि देश के और भी बहुत-से हिस्सों की तरह सूखे से जूझ रहे लातूर में पिछले कुछ दिनों से हालत यह हो गई कि लोगों के सामने प्यास बुझाने तक के लिए पानी का संकट खड़ा हो गया। तब केंद्र सरकार ने वहां वाटर ट्रेन भेजने का फैसला किया।

जाहिर है, इसे अब तक एक मानवीय पहल के तौर पर ही देखा जा रहा था। इस कवायद के बाद स्वाभाविक ही चारों तरफ केंद्र सरकार और रेलवे की प्रशंसा हुई और यह खबर चर्चा का विषय बनी। लेकिन अब रेलवे ने जिस तरह लातूर के कलक्टर को वाटर ट्रेन का किराया चुकाने के लिए बिल भेजा है, उससे यह सवाल उठा है कि क्या केंद्र और रेलवे की यह सहयोगी भूमिका कोई व्यावसायिक गतिविधि थी! क्या बाढ़ या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा के समय सरकार की ओर से कोई मदद भेजी जाती है तो उसकी भी कीमत इसी तरह वसूल करने की जरूरत महसूस की जाती है? अब अगर ऐसे आरोप सामने आ रहे हैं कि यह सूखे से पीड़ित लोगों के प्रति मोदी सरकार की संवेदनहीनता है और वह अपनी जिम्मेदारी और सहायता को कारोबार बना रही है तो इसके लिए कौन जवाबदेह है?

उत्तर प्रदेश का वाकया भी कम विचित्र नहीं है। वहां केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड की प्यास बुझाने के लिए वाटर ट्रेन भेजी और यह दावा या प्रचार किया कि उत्तर प्रदेश सरकार इस आपातकालीन तोहफे को स्वीकार नहीं कर रही है। पर बाद में खुलासा हुआ कि भेजे गए टैंकरों में पानी ही नहीं था। यह बुंदेलखंड के ग्रामीणों के प्रति हमदर्दी दिखाने का उस सरकार का तरीका था जो ‘ग्राम उदय से भारत उदय’ का दम भरती है! लातूर से वाटर ट्रेन का खर्चा मांगने और बुंदेलखंड को खाली टैंकर भेजने से पहले ही केंद्र ने जता दिया था कि सूखा-पीड़ितों की उसे कितनी चिंता है। यह सब जानते हैं कि सूखे या अकाल के दिनों में मनरेगा जैसी योजनाएं कमजोर तबकों को कैसा सहारा देती हैं। पर केंद्र ने मनरेगा के मद का पिछले साल का बकाया तब तक जारी नहीं किया जब तक इसके लिए सर्वोच्च अदालत से फटकार नहीं पड़ी। अलबत्ता इस मामले में केंद्र पर कोई राजनीतिक पक्षपात का आरोप नहीं लगा सकता। लातूर जिला महाराष्ट्र में है जहां भारतीय जनता पार्टी सत्तासीन है, और बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश में, जहां समाजवादी पार्टी की सरकार है। केंद्र ने दोनों जगह समान संवेदनहीनता का परिचय दिया!