पिछले दिनों पाकिस्तान को चेताते हुए बहुत-से बयान आए हैं। कुछ सख्त प्रतिक्रियाएं सरकार के स्तर पर भी हुई हैं। पर इन सब में सबसे कठोर लहजा रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर का है। सोमवार को सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग समेत आला फौजी अफसरों और अन्य लोगों को संबोधित करते हुए पर्रीकर ने कहा कि जो भी व्यक्ति या संगठन भारत को दर्द देगा, उसे उसी तरह से भुगतान करना होगा। लेकिन यह कब कैसे और कहां होगा, यह हमारी पसंद पर निर्भर करेगा। रक्षामंत्री की टिप्पणी पठानकोट में हुए आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में आई है। इसलिए इशारा साफ है कि वे किसे सबक सिखाने की बात कह रहे थे। इसमें दो राय नहीं कि आतंकवाद के मामले में भारत को सख्ती से पेश आने की जरूरत है। लेकिन रक्षामंत्री का बयान क्या वाकई सरकार के किसी इरादे की झलक देता है? पर्रीकर ने खुद साफ कर दिया कि यह उनका निजी मत है, इसे सरकार की सोच के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। सवाल है, फिर इसे कहने की क्या जरूरत थी? हो सकता है रक्षामंत्री सेना के अफसरों की हौसलाआफजाई करना चाहते रहे हों। पर रक्षामंत्री को विदेश नीति और सुरक्षा संबंधी मामलों में, सार्वजनिक रूप से, सरकार की नीति के अनुरूप बोलना चाहिए, या अपने निजी नजरिए के हिसाब से? चेतावनी देना, और उसे कर दिखाना, दोनों दो बातें हैं। बेशक, पर्रीकर ने ‘निजी मत’ जाहिर करते हुए भी सीधे पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, बल्कि व्यक्ति या संगठन को सबक सिखाने की बात कही। पर जहां तक सरकार का सवाल है, उसका रुख यह है कि पाकिस्तान की जवाबदेही तय की जाए, और उसे पठानकोट हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विवश किया जाए। भारत ने इस मामले में पाकिस्तान को सबूत भी सौंपे हैं। यही नहीं, भारत ने यह भी जता दिया है कि बातचीत की ताजा पहल का भविष्य बहुत कुछ पाकिस्तान की ठोस और त्वरित कार्रवाई पर निर्भर करेगा।
विदेश सचिवों की पंद्रह-सोलह जनवरी को इस्लामाबाद में प्रस्तावित बैठक होगी या नहीं, या कब होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है। भारत के इस सख्त रुख का असर भी दिखा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने आला अफसरों के साथ बैठक की और भारत की ओर से सौंपे गए सबूतों के मद्देनजर जांच के आदेश दिए। कुछ संदिग्धों को पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने बहावलपुर से गिरफ्तार भी किया है। गौरतलब है कि बहावलपुर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का गृहनगर है। सवाल है कि क्या यह कार्रवाई तार्किक परिणति तक पहुंचेगी? अतीत का अनुभव इस बारे में शक पैदा करता है। पर अगर नवाज शरीफ वार्ता प्रक्रिया को लेकर संजीदा हैं, तो उन्हें कार्रवाई को तर्कसंगत अंजाम तक जरूर ले जाना चाहिए। इससे भारत के साथ रिश्तों की बेहतरी का रास्ता तो खुलेगा ही, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में नवाज शरीफ की साख भी बढ़ेगी। दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच समग्र वार्ता की बहाली हो, यह अमेरिका समेत सारे पश्चिमी देश भी चाहते हैं, और इसका माहौल बनाने में यानी पश्चिमी देशों को इस दिशा में अपने कूटनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए राजी करने में पाकिस्तान ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पर अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है। मोदी ने पिछले दिनों अचानक अपनी संक्षिप्त पाकिस्तान यात्रा से गतिरोध तोड़ने की पहल कर दी। भारत अब भी चाहता है कि यह पहल आगे बढ़े। पर बातचीत हवा में नहीं हो सकती, उसके लिए अनुकूल माहौल भी जरूरी है।