मणिपुर में अमन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण रास्ता वहां हिंसा में शामिल समूहों को बातचीत की मेज पर लाना है। सरकार कहती तो रही है कि हिंसा फैलाने वाले समूहों से बातचीत कर समस्या का हल निकालने की कोशिश की जाएगी, मगर अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। हालत यह है कि मई महीने में शुरू हुई हिंसा आज भी जारी है और समस्या का कोई सर्वमान्य हल नहीं निकाला जा सका है। हालांकि इस बीच प्रशासनिक सख्ती और सेना के इस्तेमाल से अराजकता पर नियंत्रण की कोशिश की गई, मगर उसमें भी कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली।
जिस समूह से सरकार बातचीत कर रही उसका नाम नहीं बताई
अब राज्य के मुख्यमंत्री का कहना है कि उनकी सरकार इंफल घाटी के एक उग्रवादी समूह के साथ वार्ता कर रही है और जल्द ही शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। हालांकि जिस समूह से बातचीत के बारे में कहा गया है, फिलहाल उसका नाम नहीं बताया गया है। सवाल है कि अगर सरकार इस ओर कदम बढ़ाती दिख रही है तो क्या किसी एक उग्रवादी समूह से बातचीत के जरिए समस्या का हल निकाला जा सकेगा!
धुंध और उससे उपजी अराजकता को लेकर उदासीनता बरती गई
गौरतलब है कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव से उठे विवाद के बाद जिस स्तर का विरोध शुरू हुआ था, उसने समूचे राज्य में व्यापक जातीय हिंसा की शक्ल ले ली। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जानलेवा टकराव के दौरान अब तक लगभग दो सौ लोगों की जान जा चुकी है। इसमें सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यही थी कि मैतेई समुदाय को अगर अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने को लेकर कोई विवाद है, तो वह उसे पक्ष-विपक्ष के संबंधित समुदायों के बीच संवाद के जरिए सुलझाए। मगर ऐसा लगता है कि इस मसले पर उठे टकराव के प्रति धुंध और उसके बाद उपजी अराजकता को लेकर उदासीनता बरती गई।
सात महीने से जारी है हिंसा, आज भी बनाया जा रहा निशाना
नतीजतन, पिछले करीब सात महीने से मणिपुर में हिंसा जारी है और आज भी कुकी समुदाय के लोगों को निशाना बना कर हत्या की जाती है। जिस मसले का हल बातचीत से निकाला जा सकता था, उसके जटिल होने से नाहक हुई हिंसा में बहुत सारे लोग मारे गए, भारी पैमाने पर संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया।
अब अगर सरकार ने शांति कायम करने के लिए वार्ता का संकेत दिया है तो उसमें सिर्फ एक उग्रवादी समूह से बातचीत का हासिल क्या होगा? यह छिपा नहीं है कि राज्य में मौजूदा हिंसक और अराजक हालात में कई गुट शामिल हैं और सबकी अपनी-अपनी राय होगी। अगर उन प्रभावी गुटों को बातचीत में शामिल नहीं किया जाएगा, तो किसी एक समूह से वार्ता और शांति समझौता कितना स्थायी और दूरगामी हो सकता है?
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से निगरानी और शांति समितियों के जरिए स्थिति को संभालने की कोशिश की गई, मगर उनका ठोस हासिल नहीं रहा। इसके अलावा, एक ओर सरकार ने हिंसा पर काबू पाने की अप्रभावी कोशिशों के समांतर सभी पक्षों को एक मेज पर लाने के प्रति या तो उदासीनता दर्शायी या फिर नाकाम रही। अगर सरकार इनके बीच किसी एक उग्रवादी समूह से संवाद की बात कह रही है, तो इसके प्रति बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हिंसा में शामिल ज्यादातर समूह अब तक बातचीत के जरिए समस्या के समाधान संबंधी प्रयासों में शामिल नहीं हो सके हैं। इसलिए सरकार और एक उग्रवादी समूह के बीच बातचीत की कामयाबी इस पर निर्भर करेगी कि दूसरे गुट इस पर क्या रुख अपनाते हैं।