करीब सवा दो साल के बीच मणिपुर में यह अहम मौका है जब सरकार और कुकी समुदाय के बीच स्थायी समाधान की खोज के लिए एक सहमति बनी है और राज्य में शांति की उम्मीद जगी है। इससे पहले राज्य में जारी संघर्ष के बीच संबंधित पक्षों की अपनी शर्तों की वजह से किसी समझौते तक पहुंचना मुश्किल बना रहा और यही वजह है कि जब कुकी-जो के दो प्रमुख संगठनों और सरकार के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं, तब भी इसके जमीन पर उतरने और स्थायी हल को लेकर एक आशंका बनी हुई है।

हालांकि अब तक सबसे बड़ी समस्या यही रही कि संघर्षरत समूहों के बीच संवाद कायम होना ही एक बड़ी चुनौती थी और इसी वजह से समाधान के किसी प्रारूप पर आगे बढ़ना संभव नहीं हो सका। अब गुरुवार को केंद्र और मणिपुर की सरकार के साथ कुकी-जो के दो समूहों के बीच एक नए समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिसके तहत राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को मुक्त आवाजाही के लिए खोलने और उग्रवादी शिविरों को स्थानांतरित करने पर सहमति बनी है।

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इसमें कोई दोराय नहीं कि मई 2023 में शुरू हुए टकराव और हिंसा के जटिल हो चुके स्वरूप के बाद अब कुछ अहम बिंदुओं पर हुए समझौते को अंतिम और सबके लिए स्वीकार्य समाधान के तौर पर देखना जल्दबाजी होगी, लेकिन इस बातचीत में सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि राज्य में हिंसा और संघर्ष से प्रभावित एक मुख्य समूह की नुमाइंगी कर रहे कुकी-जो संगठनों ने भागीदारी की और फिलहाल मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने पर सहमति बनी है।

इससे पहले कुकी संगठनों की ओर से यह कई बार कहा गया कि जब तक ‘अलग पहाड़ी राज्य’ या संघ राज्य क्षेत्र की उनकी मांग पूरी नहीं होगी, तब तक वे किसी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे। यही स्थिति सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई थी।

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इस लिहाज से देखें, तो अगर कुकी-जो के दो समूहों और केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने पर सहमति बनी है, तो इसे मणिपुर में जारी टकराव या संघर्ष की स्थिति को खत्म करके स्थायी समाधान की ओर बढ़ने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है।

हालांकि इस समझौते के समांतर एक बाधा यह खड़ी हुई है कि मणिपुर में नगाओं की शीर्ष संस्था ने मुक्त आवागमन व्यवस्था को समाप्त करने और भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़ लगाने के विरोध में ‘व्यापार प्रतिबंध’ लागू करने की घोषणा कर दी है।

वहीं कुकी-जो परिषद ने कहा कि समझौते को मैतेई आबादी और कुकी जो के इलाकों के बीच के ‘बफर जोन’ में किसी तरह की आवाजाही के रूप में नहीं समझा जाए; लोगों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। जाहिर है, कुकी-जो समूहों के साथ बनी सहमति के बावजूद राज्य में स्थायी समाधान और पूर्ण शांति की फिलहाल सिर्फ उम्मीद की जा सकती है।

गौरतलब है कि राज्य में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के सवाल पर उभरा संघर्ष वहां कुकी और मैतेई समुदायों के बीच ऐसी दूरी पैदा कर चुका है, जिसका हल निकालना अब तक संभव नहीं हो सका है। वहां जातीय हिंसा के क्रम में कई महिलाओं पर बर्बर अत्याचार किए गए और अब तक ढाई सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। यह समझना मुश्किल है कि अब जाकर केंद्र और राज्य सरकार ने कुकी-जो संगठनों के साथ संवाद कायम करके शांति की राह में जो कदम बढ़ाए हैं, इस तरह की पहल पहले क्यों नहीं हो सकती थी।