मणिपुर में जातीय संघर्ष को दो वर्ष होने आ रहे हैं, मगर अब भी वहां स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा। हालांकि सरकार बार-बार दावा करती है कि वहां स्थिति जल्दी ही सामान्य हो जाएगी, पर इसका कोई संकेत नहीं दिखता। रविवार को इंफाल पूर्वी जिले में फिर दो चरमपंथी गुटों में हिंसक झड़प हो गई, जिससे वातावरण तनावपूर्ण हो गया है। यह घटना ऐसे वक्त हुई जब वहां छह न्यायाधीशों की एक टीम स्थिति का आकलन करने पहुंची थी। उस टीम में गए मैतेई समुदाय से संबंधित, वहां के उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश का इस बात पर दर्द भी छलक उठा कि वे कुकी बहुल इलाके में नहीं जा सकते।
शुरू में राज्य सरकार की शिथिलता और रहस्यमय चुप्पी के चलते वहां जातीय संघर्ष बढ़ता गया और आज हालत यह है कि राज्य का प्रशासन भी मैतेई और कुकी समुदायों में स्पष्ट रूप से विभाजित हो चुका है। कुकी बहुल इलाकों में मैतेई समुदाय के सुरक्षाकर्मी और अन्य कर्मचारी तैनात नहीं किए जाते। यही हाल मैतेई बहुल इलाकों का है।
सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए गठित की जांच समितियां
लंबे समय तक राज्य सरकार की शिथिलता बनी रही और केंद्र सरकार ने भी अपेक्षित पहल नहीं की, तब सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच और निगरानी समितियां गठित कर दी, पर उसे भी काफी वक्त बीत जाने का बावजूद कोई उल्लेखनीय नतीजा सामने नहीं आ सका है।
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आखिरकार एक नाटकीय घटनाक्रम में वहां के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह किसी को कमान सौंपने के बजाय राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। तब माना गया कि केंद्र सरकार के हाथ में वहां की कमान आने के बाद कुछ कड़ाई होगी और चरमपंथी गुटों पर लगाम कसी जा सकेगी, जातीय संघर्ष कुछ थमेगा, पर वह उम्मीद भी धुंधलाने लगी है। मौका पाते ही दोनों समुदायों के चरमपंथी गुट रणनीति के तहत हिंसक हमले कर देते हैं।
चरमपंथी गुटों पर नजर रखना मुश्किल नहीं
उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और साजो-सामान जुटा रखे हैं। भौगोलिक रूप से मणिपुर की संरचना थोड़ी जटिल जरूर मानी जा सकती है, मगर चरमपंथी गुटों पर नजर रखना मुश्किल नहीं माना जा सकता। वहां बड़ी संख्या में सुरक्षाबल तैनात हैं, पर उन इलाकों में भी हिंसक घटनाएं नहीं रुक पा रहीं, जिनमें टकराव की सबसे अधिक आशंका मानते हुए सबसे अधिक सुरक्षाबल तैनात हैं। वहां के चुराचांदपुर और विष्णुपुर जिलों को इसलिए संवेदनशील माना गया और उन दोनों के बीच ‘बफर जोन’ बना कर बड़ी संख्या में सुरक्षाबल तैनात किए गए कि एक मैतेई बहुल है और दूसरा कुकी बहुल। फिर भी इन्हीं जिलों में अधिक चरमपंथी हमलों की घटनाएं होती हैं।
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सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि मणिपुर में समस्याएं संवैधानिक तरीके से हल की जा सकती हैं और अगर बातचीत की जाए, तो समाधान तक पहुंचा जा सकता है। यहां कोई भी संघर्ष नहीं चाहता, हर कोई शांति चाहता है। न्यायाधीश गवई वहां गए न्यायाधीशों की टीम के अगुआ हैं। पता नहीं, उनकी इस बात को केंद्र सरकार कितनी गंभीरता से लेगी। यह बात शुरू से रेखांकित की जाती रही है कि अगर दोनों समुदायों से बातचीत की जाए और उनमें फैली गलतफहमियों को दूर कर लिया जाए, तो मणिपुर में शांति बहाली आसानी से हो सकती है। मगर कभी संजीदगी से बातचीत की पहल नहीं की गई। जो प्रयास हुए भी, वे महज कागजी थे।
