प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान संगम क्षेत्र के पानी में प्रदूषण का तथ्य उजागर कर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी ने खासा विवाद पैदा कर दिया था। पर, अब अपनी नई रपट में उसने स्पष्ट किया है कि वहां का पानी स्नान करने लायक था। चूंकि अलग-अलग जगहों से जल के नमूने लिए गए थे, इसलिए उनमें अलग-अलग तथ्य दर्ज हुए थे, मगर इससे पूरी नदी के पानी में अपशिष्ट की मात्रा का दावा नहीं किया जा सकता। रपट में कहा गया है कि, सांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार, जांचे गए खंडों के लिए पीएच, डीओ, बीओडी और एफसी का औसत परिमाण संबंधित मानदंडों/ अनुमेय सीमाओं के भीतर है। यह रपट 12 जनवरी से 22 फरवरी के बीच इकट्ठा किए गए आंकड़ों का समग्र विश्लेषण करने के बाद पेश की गई है।

इसी अवधि में सभी प्रमुख स्नान हुए थे। सीपीसीबी ने 17 फरवरी को पेश अपनी रपट में बताया था कि संगम क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर फीकल कोलीफार्म का स्तर स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं था। इस रपट के आधार पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब तलब किया था। तब राज्य सरकार को सफाई देनी पड़ी थी कि उसने गंगा और यमुना के जलशोधन के लिए क्या-क्या उपाय किए हैं और वहां पानी पूरी तरह स्नान के लायक है। बाद में एक वैज्ञानिक ने भी कहा कि पूरे महाकुंभ के दौरान संगम क्षेत्र का पानी पीने लायक था।

महाकुंभ के दौरान लोग जल का करते हैं आचमन

इस बार प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ को इसलिए विशेष माना गया था कि इसे एक सौ चौवालीस वर्ष बाद आया अवसर बताया गया। इसीलिए केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके आयोजन का बढ़-चढ़ कर प्रचार-प्रसार किया था। श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए हर व्यवस्था करने की कोशिश की गई थी। संगम क्षेत्र में पहुंचने वाले गंगा और यमुना के जल को हर दिन जांचने का प्रबंध भी किया गया था, ताकि उसमें किसी तरह की ऐसी अशुद्धि न घुल सके, जिससे लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचता हो।

राष्ट्रपति शासन के बाद भी मणिपुर में हिंसा का सिलसिला जारी, राज्य में शांति कायम करने के लिए केंद्र कर रही प्रयास

ऐसे में जब सीपीसीबी ने संगम क्षेत्र के पानी में फीकल कोलीफार्म यानी मानव जल-मल से पैदा बैक्टीरिया की मात्रा मानक से अधिक होने का तथ्य उजागर किया, तो लोगों की आस्था पर चोट का प्रश्न उठ खड़ा हुआ था। दरअसल, महाकुंभ के दौरान लोग आचमन भी करते हैं, वहां का पानी भर कर अपने घर लाते हैं। इस बैक्टीरिया से लोगों में गंभीर त्वचा रोग और दूसरी बीमारियां पनपने की आशंका पैदा हो गई थी।

नहीं पड़ा था श्रद्धालुओं पर कोई व्यापक और गंभीर असर

यह समझना मुश्किल है कि अब सीपीसीबी को अपने पिछले अध्ययन को दुरुस्त करने का कौन-सा सूत्र हाथ लगा है, जो उस वक्त उसके पास नहीं था। गनीमत है कि उसकी पहली रपट का श्रद्धालुओं पर कोई व्यापक और गंभीर असर नहीं पड़ा था, वरना इससे बेवजह विवाद के तूल पकड़ने का खतरा तो पैदा हो ही गया था।

दहशतगर्दी का पनाहगार पाकिस्तान अब झेल रहा दंश, एक साल में एक हजार से ज्यादा हुए आतंकी हमले

आखिर इसकी जवाबदेही किसकी मानी जाए, कि एक रपट के जरिए पहले संशय पैदा करने की कोशिश की गई, फिर महाकुंभ खत्म हो जाने के बाद उसे दुरुस्त कर दिया गया। हालांकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अभी इस प्रकरण को बंद नहीं किया है। इस पर सुनवाई होनी है। इसलिए उम्मीद की जाती है कि इस संशय का निवारण किया जाएगा कि आखिर सीपीसीबी की कौन-सी रपट सही है, पहले वाली या बाद की।