हिमाचल प्रदेश के शिमला में भारी तादाद में लोगों के पहुंचने को पर्यटन के लिहाज से एक अच्छी खबर के तौर पर देखा जा सकता है। यों भी पहाड़ों के बीच बसे तमाम इलाकों में पर्यटकों का जाना अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है, लेकिन क्या इसकी कोई सीमा है? पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों का आनंद उठाने के लिए पहुंचे लोगों की संख्या में जिस तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, उससे आर्थिक मोर्चे पर इन राज्यों को लाभ हो सकता है, मगर इस वजह से जैसे हालात पैदा हो रहे हैं, उससे इन इलाकों में बहुस्तरीय मुश्किलें ही पैदा होंगी।
नए वर्ष का जश्न मनाने के मौके पर मनाली सहित आसपास के कई इलाकों में पहुंचे लोगों और उनके हजारों वाहनों से सड़कों पर लगा लंबा जाम यही बताता है कि लोगों के भीतर घूमने की भूख तो पैदा हुई है, मगर वे इसके संतुलन के अलग-अलग पक्षों को समझने की जरूरत नहीं समझ रहे। कुछ दिनों के लिए किसी खूबसूरत प्राकृतिक स्थल की ओर जाने का क्या हासिल, अगर वहां पहुंची भीड़ ही एक मुसीबत का कारण बन जाए?
दरअसल, भीड़भाड़ वाले शहरों और महानगरों में रहने वाले बहुत सारे लोगों को यह लगता है कि दिन-रात कामकाज और तनाव से राहत पाने के लिए उन्हें वादियों में बसे मनोरम इलाकों में जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्राकृतिक सौंदर्य से लैस पहाड़ी इलाकों में जाना सबके लिए सुकूनदेह साबित होता है।
लेकिन इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि प्रकृति की जिस खूबसूरती का सुख लेने लोग पहाड़ों की वादियों में जाते हैं, वही वजह उन इलाकों की प्राकृतिक संरचना के नुकसान पहुंचने की वजह बन रही है। यह किसी से छिपा नहीं है कि हिमाचल प्रदेश या उत्तराखंड जैसे राज्यों में बसे पर्यटन के लिहाज से सुंदर इलाकों में जाने वाले लोग अपने मुताबिक घूमते तो हैं, लेकिन इस क्रम में वहां के अनुकूल अपनी गतिविधियों को नियंत्रित नहीं रख पाते।
इसमें अराजक तरीके से खुले स्थानों पर खानपान के बाद पानी के बोतल सहित अन्य कचरे जिस तरह फेंक दिए जाते हैं, वे समूचे पहाड़ी क्षेत्र में आज एक गंभीर समस्या बन चुके हैं। सवाल है कि इससे उपजे प्रदूषण की वजह से वे इलाके कब तक प्राकृतिक रूप से इतने सुंदर रह पाएंगे कि लोग वहां जाने को लालायित हों!
इसके अलावा, कुछ खास महीनों में लोगों की बढ़ती भीड़ आज इन खूबसूरत, मगर नाजुक पहाड़ी स्थलों की मुसीबत बनती जा रही है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि मनाली, शिमला और नैनीताल जैसे कुछ इलाकों में पहले ही क्षमता से अधिक बोझ है। ऐसी खबरें आ चुकी हैं, जिनमें बताया गया है कि बढ़ती आबादी और पर्यटकों के बोझ की वजह से पहाड़ों पर बसा शिमला धीरे-धीरे धंस रहा है।
दरअसल, पहाड़ों की बनावट से लेकर वहां की भू-संरचना एक तय सीमा में ही बोझ को बर्दाश्त करने की स्थिति में है। मगर एक साथ लाखों लोगों और वाहनों के पहुंचने से बने बोझ का असर वहां के नए पहाड़ों पर पड़ता है। फिर पर्यटकों की आवाजाही को आसान बनाने के लिए पहाड़ों को पहले के मुकाबले ज्यादा काट कर चौड़ी सड़कें बनाई गईं, भारी संख्या में होटल खोले गए।
इस सबका असर पहाड़ के ढांचे पर पड़ा है। यह बेवजह नहीं है कि अब आए दिन पहाड़ों के धंसने या भूस्खलन के बड़े मामले सामने आने लगे हैं। शिमला सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में लोगों के बोझ की वजह से जमीन धंसने या भूस्खलन की घटनाएं भविष्य का संकेत देने के लिए काफी हैं।