राजस्थान के जैसलमेर में हुए भयावह बस हादसे से लोग अभी उबरे भी नहीं थे कि आंध्र प्रदेश के कुरनूल में ठीक उसी तरह हुई दुर्घटना ने सभी को झकझोर दिया। इन हादसों को जोड़ कर देखें, तो परिवहन विभागों में भ्रष्टाचार की कई परतें दिखाई देती हैं। दोनों घटनाओं में बस के आपात द्वार नहीं खुलने की बात सामने आई है। यह बेहद चिंता की बात है कि कई यात्री बसें अवैध तरीके से वातानुकूलित बना कर चलाई जा रही हैं। इनकी कभी कोई जांच नहीं होती। यहां तक कि अग्नि सुरक्षा के न्यूनतम उपाय भी नहीं किए जाते हैं।

मोटर वाहन कानून में कमियों का फायदा जिस तरह से बस मालिकों ने उठाया है, उसी का परिणाम है कि आज हजारों यात्री जान जोखिम में डाल कर इन बसों में सफर कर रहे हैं। गौरतलब है कि ऐसी कई बसें चल रही है, जिनका पंजीकरण किसी राज्य में, तो फिटनेस प्रमाणपत्र किसी दूसरे राज्य से लिया गया है। कुरनूल हादसे के बाद यह बात उजागर हुई है। स्पष्ट है कि राज्यों में तालमेल की कमी और मोटर वाहन कानून में सख्त प्रावधान न होने से सामान्य नियमों तक में खुला उल्लंघन हो रहा है।

बसों में प्राय: एक दरवाजा होने के कारण जिंदगी बचाने का कोई रास्ता नहीं मिलता

गौरतलब है कि वाहनों में आधुनिक तकनीक से लैस स्वचालित दरवाजे भी यात्रियों के लिए खतरनाक साबित हुए हैं। कारों में आग लगने पर कई बार ऐसा हुआ कि यात्री उसी में फंसे रह गए। वहीं लंबी दूरी की बसों में प्राय: एक दरवाजा होने के कारण जिंदगी बचाने का कोई रास्ता नहीं मिलता। हादसे के दौरान या आग लगने की स्थिति में स्वचालित दरवाजे आमतौर पर काम करना बंद कर देते हैं और नहीं खुलते। जैसलमेर और कुरनूल हादसे में यही हुआ। शार्ट सर्किट के कारण उस बस का स्वचालित दरवाजा नहीं खुला।

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वाहनों के दरवाजों के खुलने या बंद होने को लेकर आधुनिक तकनीक सुविधाजनक हो सकती है, लेकिन इसके जोखिम भी उतने ही घातक हैं। अब कार, बस से लेकर अपने घरों तक में लोग सुरक्षा घेरा मजबूत करने के लिए आधुनिक तकनीकी वाले स्वचालित दरवाजे लगवाते तो हैं, लेकिन किसी हादसे के वक्त वही सुविधा जानलेवा बन जाती है। राजमार्गों पर बिना सुरक्षा उपायों के और नियमों की धज्जियां उड़ाती दौड़ रहीं बसों की नियमित जांच न कर परिवहन विभागों ने भी मानो खुली छूट दी हुई है।