भविष्य संवारने की तैयारी वर्तमान के लिए इस कदर बोझ बनती जा रही है कि इसके तले दब कर बहुत सारी होनहार प्रतिभाओं का जीवन पिस रहा है। रविवार को राजस्थान के कोटा से दो और विद्यार्थियों की खुदकुशी ऐसी लगातार सामने आ रही घटनाओं की एक ताजा कड़ी भर है। शुरुआती तौर पर जो संकेत सामने आए हैं, अगर वे सही हैं तो यह एक बार फिर अपने पाठ्यक्रम की पढ़ाई, उसकी परीक्षा में फेल होने के डर से उपजे तनाव में जान दे देने के ही मामले हैं। दस दिन पहले भी सत्रह साल की एक छात्रा ने आइआइटी-जेईई की मुख्य परीक्षा में कम अंक आने से हताश होकर जान दे दी थी। इस साल अब तक कोटा में रह कर इंजीनियरिंग या मेडिकल में दाखिले के लिए कोचिंग कर रहे आठ विद्यार्थी खुदकुशी कर चुके हैं। पिछले साल वहां से तीस विद्यार्थियों की आत्महत्या की खबरें आई थीं।
सवाल है कि जिन विद्यार्थियों को सहज ढंग से पढ़ाई करके इंजीनियर या डॉक्टर बनना था या किसी और क्षेत्र में अपनी जगह बनानी चाहिए थी, वे खुदकुशी का रास्ता क्यों चुन रहे हैं? ऐसे मामलों में तेजी से बढ़ोतरी के बाद देश भर में लोगों का ध्यान इस ओर गया है और इसे एक गंभीर समस्या के तौर पर चिह्नित भी किया गया है। हकीकत यह है कि आइआइटी में दाखिले की तैयारी के लिए प्रचार पा चुके कोटा में आज बड़ी तादाद में बच्चे कोचिंग कर रहे हैं, लेकिन यह तैयारी आज ऐसी होड़ में तब्दील हो चुकी है जिसमें हर हाल में कामयाब होने की शर्त बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रही है।
आइआइटी में दस हजार सीटों के लिए लगभग तेरह लाख प्रतियोगी शामिल होते हैं। जाहिर है, जितनी सीटें हैं, उनके अलावा बाकी को आगे के लिए रुक जाना पड़ता है। लेकिन कोटा में तैयारी कर रहे बच्चों के सिर पर अपने चुनाव और अपनी इच्छा से ज्यादा परिवार की महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ रहता है। यह छिपा नहीं है कि वहां पढ़ाई-लिखाई का क्या आलम है। आइआइटी में दाखिले के साथ-साथ सुबह से लेकर शाम तक कोचिंग कक्षाओं में लगातार पढ़ाई, आइआइटी-मेडिकल के अलावा दूसरे विकल्पों के बारे में जानकारी का अभाव, प्रवेश परीक्षा में फेल होने पर दोबारा कर्ज न मिलने का डर, कोचिंग संस्थानों का बेलगाम तरीके से पैसा वसूलना, कम रैंक लाने वाले विद्यार्थियों को अपमानित करने के हालात, छुट्टियां न के बराबर और इसके साथ-साथ बच्चों पर लगातार अभिभावकों का दबाव कि हर हाल में कामयाब होना ही है।
ये सभी वजहें मिल कर विद्यार्थियों को ऐसे तनाव में डाल देती हैं कि कई बार इससे उबरना उनके लिए असंभव हो जाता है। दूसरी ओर, इस गहराती समस्या के मद्देनजर कोचिंग संस्थानों के लिए काउंसलर और मनोवैज्ञानिकों की सेवा लेने सहित कई दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। लेकिन पैसा कमाने की होड़ में कोचिंग संस्थानों की ओर से शायद इन पर गौर करना जरूरी नहीं समझा जाता। ऐसे हालात में दबाव और तनाव के शिकार होकर विद्यार्थियों के मादक पदार्थों का सेवन करने से लेकर आत्महत्या कर लेने तक के मामले अगर एक प्रवृत्ति बनते जा रहे हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेवार है?