खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश के आरोप में एक अमेरिकी अदालत के भारत सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रा प्रमुख के खिलाफ, जारी अदालती फरमान को लेकर स्वाभाविक ही चर्चा तेज हो गई है। यह चर्चा ऐसे समय में शुरू हो गई है, जब अगले हफ्ते प्रधानमंत्री क्वाड बैठक में हिस्सा लेने अमेरिका जाने वाले हैं। पन्नू की हत्या की साजिश का पर्दाफाश खुद अमेरिकी सुरक्षा एजंसी ने किया था। उसने एक भारतीय व्यवसायी को गिरफ्तार किया था, जिसने कबूल किया कि एक बड़े भारतीय अधिकारी के कहने पर उसने पन्नू की हत्या की साजिश रची थी। इसे लेकर वहां के अखबारों में भी खूब चर्चा रही। उसी आधार पर पन्नू ने अमेरिका की एक जिला अदालत में मुकदमा दायर किया, जिसके आधार पर यह अदालती फरमान जारी हुआ है।
हालांकि भारत सरकार ने पन्नू के मुकदमे को निराधार बताया है। इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय खुफिया एजंसी का हाथ बताया था। उस संबंध में भारत सरकार लगातार कनाडा सरकार से सबूत मांगती रही, मगर वह दे पाने में अक्षम ही साबित हुई।
कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिकी अदालत के फरमान के बाद दोनों देशों के रिश्तों में कुछ खटास पैदा हो सकती है, मगर इसका कोई आधार नहीं है। अदालतों की अपनी एक प्रक्रिया होती है और अमेरिकी जिला अदालत ने उसका पालन किया है। इससे अमेरिका और भारत के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। छिपी बात नहीं है कि पन्नू को भारत सरकार ने आतंकवादी घोषित कर रखा है। वह प्रकट रूप से खालिस्तान समर्थकों को उकसाता और मदद मुहैया कराता रहता है। वह अमेरिका और कनाडा दोनों देशों का नागरिक है।
भारत सरकार उसके खिलाफ शिकंजा कसने की मांग करती रही है, मगर कनाडा सरकार ने कभी उस पर गंभीरता नहीं दिखाई। जब एक संदिग्ध भारतीय नागरिक को अमेरिकी खुफिया एजंसी ने गिरफ्तार किया और उससे पता चला कि पन्नू की हत्या की साजिश रची गई है, तो पन्नू को खालिस्तान समर्थकों को भारत सरकार के खिलाफ भड़काने और उनकी सहानुभूति हासिल करने का मौका मिल गया। जाहिर है, इस बहाने वह अपने पक्ष में सहानुभूति लहर बनाने और यह साबित करने का प्रयास कर रहा है कि भारत सरकार खालिस्तान समर्थकों के विरुद्ध साजिशें रच रही है।
कोई भी देश और वहां की अदालत किसी भी आतंकी गतिविधि में शामिल व्यक्ति के किसी दूसरी सरकार के विरुद्ध अनर्गल आरोप को प्रोत्साहित नहीं कर सकती। चूंकि अमेरिकी अदालत के सामने पन्नू के आरोपों के पीछे कुछ आधार हो सकते हैं, इसलिए अदालत ने यह फरमान जारी कर दिया। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि इससे पन्नू का पक्ष मजबूत हो गया। केवल किसी आरोपी के कबूलनामे के आधार पर कोई मामला सच साबित नहीं हो जाता। ऐसे मामलों में उच्चस्तरीय जांचें महत्त्वपूर्ण होती हैं। जब अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा एजंसियां इस मामले में कोई कदम नहीं उठा रहीं, तो पन्नू के आरोप का बहुत कोई अर्थ नहीं रह जाता।
प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के समय भी निश्चय ही इस मसले पर वहां के राष्ट्रपति के साथ चर्चा होगी। यह बात गहराई से रेखांकित होनी चाहिए कि आतंकी गतिविधियों में संलिप्त और अमेरिका तथा कनाडा जैसी जगहों पर पनाह पाए पन्नू जैसे लोगों के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।