केरल के एर्नाकुलम जिले में एक दलित युवती से बलात्कार और उसकी हत्या की जैसी बर्बर घटना सामने आई है, वह किसी भी सभ्य और संवेदनशील समाज के लिए सदमे से कम नहीं होना चाहिए। इस घटना में पुलिस से लेकर आस-पड़ोस के लोगों तक की जो भूमिका रही, वह बेहद परेशान करने वाली है। पेरूंबवूर में रहने वाली एर्नाकुलम लॉ कॉलेज में विधि पाठ्यक्रम के अंतिम दौर में पढ़ाई कर रही छात्रा के घर में घुस कर अपराधी ने बलात्कार और बेहद बर्बर तरीके से हत्या को अंजाम दिया, चाकू से उसकी आंतें बाहर निकाल दीं। इस बात का सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपराधी किस बर्बर प्रकृति का होगा और उसके मन में युवती के खिलाफ किस स्तर की कुंठा भरी रही होगी। विडंबना है कि करीब पांच बजे शाम को हुई इस वारदात को लेकर आसपास के तमाम लोग बेखबर रहे और किसी ने उस घर से निकल कर जाते व्यक्ति के बारे में कुछ पूछना जरूरी नहीं समझा। जब युवती की मां रात आठ बजे घर आई और रोने लगी तब भी उस परिवार से संबंध ठीक न होने का हवाला देकर पड़ोसियों ने मदद की गुहार नहीं सुनी।
यही नहीं, प्रशासन ने पिछले गुरुवार को हुई इस वारदात के मामले में तब तक टालमटोल का रवैया अख्तियार किए रखा, जब तक इसने तूल नहीं पकड़ लिया। यह ज्यादा गंभीर इसलिए भी है कि जिस युवती के साथ यह घटना हुई, उसकी मां ने पहले भी बेटी को परेशान करने और धमकी देने की शिकायत पुलिस के पास की थी, लेकिन पुलिस को कोई कार्रवाई करना जरूरी नहीं लगा। घटना के पांच दिनों के बाद भी मामला दर्ज नहीं करने वाली पुलिस और सरकार अब अगर कह रही हैं कि आरोपियों को बख्शा नहीं जाएगा, तो उसका क्या मतलब है! सवाल है कि इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस घटना को होने देने की भूमिका समाज से लेकर सरकार तक के किस रवैए ने रची?
पीड़ित परिवार पहले ही बेहद गरीबी की हालत में जी रहा था, बेटी और मां अकेले एक कमरे के छोटे घर में रहते थे, लेकिन पड़ोसियों ने बहुत छोटी-छोटी बातों के लिए उन्हें तंग करना जारी रखा था। युवती एक छोटी नौकरी के साथ पढ़ाई कर रही थी और उसकी मां घरेलू सहायिका का काम करती थी। भारतीय समाज का जो स्वरूप है, उसमें बेहद तंगहाली में जीवन गुजारते हुए दलित परिवार में किसी तरह बीए करने के बाद विधि की पढ़ाई करके समाज में कुछ जगह बनाने के सपने को कोई भी संवेदनशील इंसान समझ सकता है। लेकिन इतने सालों की तकलीफ झेल कर इस मुकाम तक पहुंच सकी युवती और उसके सपने को एक झटके में खत्म कर दिया गया। इसे अंजाम देने वाले अपराधी का दिमाग पितृसत्ता और सामंती सामाजिकता से संचालित हो रहा था, लेकिन सरकार और पुलिस के वक्त रहते जरूरी कदम न उठाने के पीछे कौन-से पूर्वाग्रह काम कर रहे थे? यों भी, सौ प्रतिशत साक्षरता वाले केरल में हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। अगर ऐसे अपराधों के प्रति पुलिस और प्रशासन के साथ-साथ समाज का रवैया इसी तरह संवेदनहीन और उपेक्षापूर्ण रहा तो जाहिर है, इसका शिकार कमजोर तबकों की महिलाएं ही होंगी। लेकिन फिर ऐसे अपराधों की आग में समूचा समाज झुलसेगा!