उत्तर प्रदेश में कैराना से कथित तौर पर बड़ी तादाद में हिंदू परिवारों के पलायन की खबर के तूल पकड़ने के बाद केंद्र ने उत्तर प्रदेश सरकार से इस मसले पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसे किसी बड़े संकट के पैदा होने से पहले सावधानी बरतने के लिहाज से एक सही कदम कहा जा सकता है। मगर पिछले करीब एक हफ्ते के दौरान इस मामले में जैसी बातें सामने आई हैं, क्या केंद्र सरकार उससे अनजान है? गौरतलब है कि भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने कुछ दिनों पहले एक सूची जारी कर यह दावा किया था कि इस इलाके में रहने वाले हिंदुओं को मजबूरन भागना पड़ा। उन्होंने जिस अंदाज में इस बात को पेश किया, उसे एक खास समुदाय के खिलाफ माहौल बनाने के तौर पर देखा गया।

खासकर मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यह समूचा इलाका कई साल के बाद भी पूरी तरह सामान्य नहीं हो सका है और सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाली कोई भी बात बेहद गंभीर नतीजे पैदा कर सकती है। ऐसे में हुकुम सिंह की ओर से जारी सूची को लेकर चिंता पैदा होना स्वाभाविक था। लेकिन जब कई मीडिया संस्थानों ने इस सूची की पड़ताल शुरू की तो तथ्य बिल्कुल उलट निकले। कई लोग उस इलाके में अब भी मौजूद हैं, कइयों की मौत सालों पहले हो चुकी है, कुछ लोग दस या बीस साल पहले रोजगार या दूसरी वजहों के चलते इलाके से बाहर गए। कुछ ऐसे मामले हैं, जिनमें स्थानीय अपराधियों की धमकियों या रंगदारी से परेशान होकर किसी व्यवसायी ने वहां से जाने का फैसला किया। लेकिन न तो अपराधियों के गिरोह समुदाय विशेष के आधार पर बने हुए हैं, न उनकाशिकार कोई खास समुदाय है। यानी अगर पलायन में इस पहलू की कोई भूमिका है तो वह कानून-व्यवस्था की नाकामी का नतीजा है, न कि उसका कोई सांप्रदायिक आधार है। बल्कि इसके उलट स्थानीय लोगों ने सांप्रदायिक आधार पर आपस में किसी तरह के तनाव की बात से इनकार किया है।

जब मीडिया की कोशिशों के चलते हुकुम सिंह के दावों के उलट तथ्य सामने आए तो उन्होंने कहा कि लोगों के पलायन की वजह सांप्रदायिक नहीं है। सवाल है कि जिस दावे के बाद सांप्रदायिक तनाव या दंगे की स्थिति पैदा हो सकती थी, जानमाल का भारी नुकसान हो सकता था, उसे बिना किसी सबूत के इस अंदाज में सार्वजनिक करने के पीछे उनकी मंशा क्या थी? विडंबना है कि हुकुम सिंह के शुरुआती बयानों की किसी ठोस पुष्टि के बिना खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी उसी भाषा में चिंता जाहिर की। अगर ऐसे आरोप सामने आ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में भावी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रख कर भाजपा अफवाहों के सहारे वोटों के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है तो उसे अपने रवैये पर पुनर्विचार करना चाहिए।

सरकार सिर्फ उनकी नहीं होती, जिन्होंने किसी खास राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान किया होता है। वह सत्ता पर काबिज पार्टी के विरोधी के लिए भी उतनी ही होती है। जहां तक कैराना से जुड़े ताजा मुद्दे का सवाल है, कानून-व्यवस्था में कमी के लिए निश्चित तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, लेकिन उसे सांप्रदायिक रंग देना दीर्घकालिक नुकसान की वजह बनेगा। ऐसे अनेक त्रासद अनुभवों से देश गुजर चुका है और इस तरह की किसी भी कोशिश को तत्काल सख्ती से रोका जाना चाहिए।